जैसे सिर के वजह से शरीर को पहचान और सम्मान मिलता है उसी तरह समाज में पिता की वजह से ही संतान को एक पहचान और सम्मान मिलती है। पिता पुत्र का सम्बन्ध बड़ा विचित्र है , पिता पुत्र को तब गले लगाके ख़ुशी से रो पड़ता है जब पुत्र को होश नहीं होता (यानि जब वो पैदा होता है , ),लेकिन तमाम ज़िन्दगी दोनों एक दूरी बना के रखते हैं। पिता अपने मन की बात कभी भी पुत्र से नहीं कहता।
किन्तु जब पिता दुनिया से चला जाता है तो पुत्र छिप छिप कर किश्तों में उन सब बातो को याद करके रोटा है जो पिताजी ने कभी जाहिर नहीं की।
पिताजी का गुस्सा तो सदा याद रहा लेकिन उनका धैर्य नहीं समझ पाए , उनका रोकना टोकना तो याद रहा पर उन्होंने कितनी परवाह की वो नही समझ पाया। उनका कई अनचाही रिश्तेदारियों में हमे भेजना ,जबरदस्ती दकियानूसी समाज को समझाना।।। हर बात में कितनी गहराई थी, हम कुछ भी तो नहीं समझ पाए। कई गरीब बूढी औरतो को ऐसे देखा जैसे उनका बेटा चला गया, कई ऐसे गरीब बाप भी चुपके से कह कर गए की बेटा आपके पिताजी ने जरूरत पर रूपये उधार दिए थे हमे। अबकी पेंशन वापस कर दूंगा। तब मालूम पड़ा की पापा ने कभी रूपये की इस्तेमाल खुद के लिए किया ही नहीं। कभी सब्जी ,कभी बच्चो के लिए टॉफ़ी।
हम कुछ भी तो नहीं समझ पाए।
बस एक बात समझ पाए की उन्हें समझने में इतनी देर कर दी की अब कुछ भी समझने को बचा ही नहीं।
उनकी सांस मेरे सामने हाथो से बालू रेत की तरह निकल गयी , हम कुछ कर भी ना पाए।
वो आखिरी सांस तक हमसे बात करने के लिए जीवित रहे और आखिरी बार मुस्कराहट के साथ हमारा साथ छोड़ गए।
बहुत कुछ कहना शेष था उनसे।
अगले जन्म में मिलेंगे तो शिकायत कर लूंगा।