Thursday, 19 August 2021

आखिर क्यों लोग गाँव छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं . //लोगो के गाँव छोड़ने के सामाजिक कारण// #गाँव_से_पलायन #गाँव//की//कमिया//

 साथियों , 

कोई भी व्यक्ति ख़ुशी से अपना गाँव नहीं छोड़ता जब तक की उसे किन्ही ऐसे हालात का सामना ना करना पड़े जिनसे बचने का एकमात्र रास्ता गाँव छोड़ना ही लगे, गाँवो और शहरो में रहने वाले लोग अक्सर ही गाँव की अच्छाई और  बुराई अपने अपने हिसाब से बताते रहते हैं . और इसमें कोई भी आश्चर्य  नहीं की गाँवो में जितनी शुध्ह्ता ,अपनापन और प्रकृति के प्रति अपनापंन है वही कही दुसरे सिरे से देखने पर यही प्यारे गाँव कई ऐसी बिमारिओ से घिरे मिलते हैं जिनका उपचार बहुत ही मुश्किल लगता है . आज मैं उन्ही बातो को यहाँ  लिखने की कोशिश कर  रहा हूँ. 

आप लोग अपने विचार व्क इन समस्यायों के समाधान कमेंट बॉक्स में जरुर लिखे .

१. दुसरो के घरो में ताका झांकी - मेरे हिसाब से ये एक ऐसी समस्या है जिसकी वजह से काफी लोग गाँव से पलायन भी कर जाते हैं . अब चूँकि गाँव काफी लोग खेती बड़ी के काम में लगे हुए होते हैं तो वो अपना काम सिर्फ सुबह और शाम करते हैं बाकि के खाली समय को अक्सर औरते एक दूजे के घर के बारे में  बाते करके बिताते हैं .अक्सर ये बाते चुगली का रूप होती हैं  जिसमे कई बार सामान्य लोगो को तकलीफ भी होती है .



२ अफवाहों का फैलना : गाँवो में कोई भी बात बहुत जल्दी से फ़ैल जाती है , इसी वजह से यहाँ अफवाहे भी बड़ी जल्दी फैलती है , ग्रामीण युवा किसी भी घटना को बहुत जल्दी ही बिना अपने विवेक का प्रयोग किये अपने हिसाब से फैला देते हैं . इस कारण अक्सर गाँव में विवादों का भी जन्म होता रहता है .

३: शराब की यारी, बिन मतलब मगजमारी  : यूँ तो शराब गाँव शहर दोनों ही जगह बराबर नुकसान करती है किन्तु गाँव में अक्सर लोग शराब पीकर पूरे मोहल्ल्ले में हल्ला मचाते हैं , और अश्लील व् भद्दी गालियों का भी प्रयोग करते हैं . जिससे अकारण झगडे होते हैं जो माहोल को ख़राब करते हैं /

४: बच्चो पर बुरा प्रभाव : ऐसे वातावरण का बच्चो पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है और वो भी ऐसे नशीले पदार्थो का सेवन करना शुरू कर देते हैं. शरबियो की गलियों को बच्चे भी अपनी भाषा में इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं जोकि बाद में उनके चरित्र पतन का कारण बन सकता हैं/

५. गाँव की राजनीती से सरकारी कार्यो में बाधा डालना : गाँव में अक्सर ही राजनीति  से रंजीशे पैदा हो जाती  हैं , और इसमें गाँव के कुछ व्यक्ति स्वयम  को  बड़ा साबित करने के चक्कर में गाँव में होने वाले विकास कार्यो में रोड़े अटका देते हैं . उदाहरण- गाँव में अक्सर ही नालियों, सड़के चोड़ी करने, सरकारी नल को व्यक्तिगत बना लेने ,या सरकारी जमीन पर कब्ज़ा, गाँव के स्कूल व् अन्य बाल परियोजना में दिक्कते करना आदि  



६. जातिवादी मानसिकता से गाँव के अंदर विवाद करना और दुसरे पक्ष को परेशां करना : यह समस्या अक्सर ही गाँवो में देखि जाती है की किसी जाति या  धर्म विशेष के लोग गाँव में दबंगई करने की कोशिश करते हैं और कम संख्या वालो या शांत रहने वाले वर्ग के साथ किसी भी विवाद को जातिगत  या धार्मिक रंग देकर उनका उत्पीडन करते रहते हैं . दुसरे के पास सहने या गाँव छोड़ने के सिवा कोई चारा नहीं बचता .

७. चरित्र चित्रण : गाँव चोपलो या अड्डो पर बैठ कर गाँव के सबसे नाकारा , खाली, कामचोर और अय्याश किस्म के लफंडर गाँव की सभी पढने लिखने वाली लडकियों का चरित्र चित्रण करते हैं , और अक्सर उनपर उलटी सीढ़ी टिपण्णी करते हैं ,फिर यदि कोई उनकी शिकायत करे तो उल्टा उसी के बारे में कोई भी मनघडंत अफवाह उड़ाकर उन्हें गाँव में बदनाम करते हैं . इस वजह से अक्सर बहुत से परिवार ऐसे जगह से पलायन कर जाते हैं .कई बार ऐसे कारणों से लडकिया  आत्महत्या जैसे घातक कदम उठाने पर भी विवश हो जाती हैं /





८ दुसरो की प्रगति से जलने का स्वाभाव : इर्ष्या मानव का स्वाभाव है किन्तु गाँवो में कम  लोग होने से लोग एक दूजे की तुलना करते रहते हैं और अक्सर ही अपने साथी पडोसी की प्रगति से जलते है , इसके कारण वे न सिर्फ अपनी अपितु उसकी उर्जा भी व्यर्थ में व्यय करवा देते हैं , जिसका परिणाम ये होता है की गाँव में से ऐसे परिवार निकल जाते हैं जो वह के लिए आदर्श हो सकते थे .



इन सभी कमियों के उपचार भी होंगे, क्युकी मैं एक अध्यापक हूँ तो पहले कमिया  देखना जरूरी है , और एक अभियंता  भी हूँ तो इन सभी कमियों के उपचार की बात करना आवश्यक है . उम्मीद है आप लोग भी इनसे बचने के उपाय खोजने में मेरी मदद करेंगे .


सधन्यवाद

गौरव भारद्वाज 

एक ग्रामीण अध्यापक 




  

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