Sunday, 5 November 2017

Art Compitetion about Clean India and Beti Bachao Beti Padhao... #BetiBachaoBetiPadhaoInHindi

हरियाणा के पानीपत में 22 जनवरी 2015 को पीएम नरेन्द्र मोदी के द्वारा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के नाम से एक सरकारी योजना की शुरुआत हुई। भारतीय समाज में लड़कियों की दयनीय दशा को देखते हुए इस कार्यक्रम की शुरुआत की गयी। आँकड़ों के अनुसार, 1991 में (0-6 वर्ष के उम्र के) हर 1000 लड़कों पर 945 लड़कियाँ है, जबकि 2001 में लड़कियों की संख्या 927 पर और दुबारा 2011 में इसमें गिरावट होते हुए ये 1000 लड़कों पर 918 पर आकर सिमट गयी। अगर हम सेंसस के आँकड़ों पर गौर करें तो पाएँगे कि हर दशक में लड़कियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज हुई है। ये धरती पर जीवन की संभावनाओं के लिये भी खतरे का निशान है। अगर जल्द ही लड़कियों से जुड़े ऐसे मुद्दों को सुलझाया नहीं गया तो आने वाले दिनों में धरती बिना नारियों की हो जायेगी और तथा कोई नया जन्म नहीं होगा।
देश में लड़कियों के बुरे आँकड़ों को ध्यान में रखते हुए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत की। ये बेहद प्रभावकारी योजना है जिसके तहत लड़कियों की संख्या में सुधार, इनकी सुरक्षा, शिक्षा, कन्या भ्रूण हत्या का उन्मूलन, व्यक्तिगत और पेशेवर विकास आदि का लक्ष्य पूरे देश भर में है।  इसे सभी राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों में लागू करने के लिये एक राष्ट्रीय अभियान के द्वारा देश (केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय, स्वास्थ्य तथा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय) के 100 चुनिंदा शहरों में इस योजना को लागू किया गया है। इसमें कुछ सकारात्मक पहलू ये है कि ये योजना लड़कियों के खिलाफ होने वाले अपराध और गलत प्रथाओं को हटाने के लिये एक बड़े कदम के रुप में साबित होगा। हम ये आशा करते हैं कि आने वाले दिनों में सामाजिक-आर्थिक कारणों की वजह से किसी भी लड़की को गर्भ में नहीं मारा जायेगा, अशिक्षित नहीं रहेंगी, असुरक्षित नहीं रहेंगी, बलात्कार नहीं होगा आदि। अत: पूरे देश में लैंगिक भेदभाव को मिटाने के द्वारा बेटी-बचाओ बेटी-पढ़ाओ योजना का लक्ष्य लड़कियों को आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह से स्वतंत्र बनाने का है।





स्वच्छता ही सेवा Creative future of India #NYKS #GauravBhardwaj #NYVRajpura #SikheraMeerut #Salarpur

स्वच्छता ही सेवा अभियान के अंतर्गत सिखेड़ा व् सलारपुर के जूनियर हाई स्कूल में करायी गयी चित्रकला प्रतोयोगिता के विजेता छात्रो को सम्मानित किया गया। सिखेड़ा में बच्चों को सर्टिफिकेट व् मैडल देकर ग्राम प्रधान श्री नवीन चौहान जी व् राष्ट्रिय स्वयं सेवक गौरव भारद्वाज ने सम्मानित किया।
   यहाँ स्वाति चौहान ने प्रथम स्थान प्राप्त किया।
कार्यक्रम में प्रधानचार्य श्रीमती संगीता जी व् श्री अशोक जी ने बच्चों को स्वच्छता के प्रति अपने घरवालो को भी जागरूक करने को कहा।
इसी श्रंखला के अन्तर्गत बच्चों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने के लिए सलारपुर के जूनियर हाई स्कूल में करायी गयी चित्रकला प्रतियोगिता के विजेता छात्रो को भी सर्टिफिकेट व् मैडल देकर ग्राम प्रधान श्री कुंवर साहब भरद्वाज जी व् NYV अंशुल गुप्ता ने सम्मानित किया । यह देवा  ने बेहद सुंदर चित्र बनाकर प्रथम स्थान हासिल किया। प्रधानाचार्य श्रीमती सरवत जहाँ जी व् अन्य अध्यापको ने टीम का पूरा सहयोग किया।

कार्यक्रम में नेहरू युवा केंद्र से राष्ट्रीय स्वयं सेवक गौरव भारद्वाज और अंशुल गुप्ता  और युवा मंडल के पदाधिकारी पंकज,निखिल  शर्मा,अरविन्द प्रजापति उपस्थित रहे।

Thursday, 5 October 2017

पौधरोपण का महत्व || आप प्रकृति को बचाओ बाकी सब कुछ स्वयं बच जाएगा || वृक्षारोपण से लाभ #Plantation #SikheraMeerut #RajpuraBlockNYV

आप प्रकृति को बचाओ बाकी सब कुछ स्वयं बच जाएगा ....
जब से दुनिया शुरू हुई है, तभी से इंसान और क़ुदरत के बीच गहरा रिश्ता रहा है। पेड़ों से पेट भरने के लिए फल-सब्ज़ियां और अनाज मिला। तन ढकने के लिए कपड़ा मिला। घर के लिए लकड़ी मिली। इनसे जीवनदायिनी ऑक्सीज़न भी मिलती है, जिसके बिना कोई एक पल भी ज़िन्दा नहीं रह सकता। इनसे औषधियां मिलती हैं। पेड़ इंसान की ज़रूरत हैं, उसके जीवन का आधार हैं। अमूमन सभी मज़हबों में पर्यावरण संरक्षण पर ज़ोर दिया गया है। भारतीय समाज में आदिकाल से ही पर्यावरण संरक्षण को महत्व दिया गया है। भारतीय संस्कृति में पेड़-पौधों को पूजा जाता है। विभिन्न वृक्षों में विभिन्न देवताओं का वास माना जाता है। पीपल, विष्णु और कृष्ण का, वट का वृक्ष ब्रह्मा, विष्णु और कुबेर का माना जाता है, जबकि तुलसी का पौधा लक्ष्मी और विष्णु, सोम चंद्रमा का, बेल शिव का, अशोक इंद्र का, आम लक्ष्मी का, कदंब कृष्ण का, नीम शीतला और मंसा का, पलाश ब्रह्मा और गंधर्व का, गूलर विष्णू रूद्र का और तमाल कृष्ण का माना जाता है। इसके अलावा अनेक पौधे ऐसे हैं, जो पूजा-पाठ में काम आते हैं, जिनमें महुआ और सेमल आदि शामिल हैं। वराह पुराण में वृक्षों का महत्व बताते हुए कहा गया है- जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, एक बड़, दस फूल वाले पौधे या बेलें, दो अनार दो नारंगी और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह नरक में नहीं जाएगा।

यह हैरत और अफ़सोस की ही बात है कि जिस देश में, समाज में पेड़-पौधों को पूजने की प्रथा रही है, अब उसी देश में, उसी समाज में पेड़ कम हो रहे हैं। बदलते दौर के साथ लोगों का प्रकृति से रिश्ता टूटने लगा। बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वृक्षों को काटा जा रहा है। नतीजतन जंगल ख़त्म हो रहे हैं। देश में वन क्षेत्रफल 19.2 फ़ीसद है, जो बहुत ही कम है। इससे पर्यावरण के सामने संकट खड़ा हो गया है। घटते वन क्षेत्र को राष्ट्रीय लक्ष्य 33.3 फ़ीसद के स्तर पर लाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा वृक्ष लगाने होंगे। साथ ही ख़ुशनुमा बात यह भी है कि अब जनमानस में पर्यावरण के प्रति जागरूकता आ रही है। लोग अब पेड़-पौधों की अहमियत को समझने लगे हैं। महिलाएं भी इस पुनीत कार्य में बढ़ चढ़कर शिरकत कर रही हैं।

बच्चो को पौधरोपण के लिए प्रोत्साहित करते हुए स्वयं भी यही अनुभूति हुई .

इस वैश्विक महामारी कोरोना ने ऑक्सीजन के लिए इंसान को दर- बदर भटकने को मजबूर कर दिया, या यूं कहें कि वृक्षों ने उन्हें अपनी औकात बता दिया। 

 हरियाली से ही जीवन बनता है। क्योंकि जीवन जीने के लिए हमें शुद्ध आक्सीजन की आवश्यकता होती है ।

जो हमें केवल पेड़ों से ही प्राप्त होती है।   लोगों को पौधरोपण के लिए प्रेरित करें। इससे यह प्रेरणा मिलती है, कि जीवनदायिनी ऑक्सीजन को बचाने और उसका भविष्य में सदुपयोग होगा। इसके लिए सभी को आगे बढ़कर पौधरोपण करना चाहिए।  बबूल एक ऐसा प्राकृतिक ट्री गार्ड है जो पौधों को भेड़ बकरियों से सुरक्षा प्रदान करती है।



शौचालय में पानी को व्यर्थ बहाने से रोका जाना आवश्यक #SaveWaterInToilet #WaterInToilet

माननीय भारत ,

हम सब कुछ क्रर सकते हैं किन्तु बिन पानी के नहीं जी सकते.  कल तक मुफ्त में प्रकृति का दिए ये उपहार आज बोतलों में २०-२० रूपये में बिकने लगा है ; कल को शायद कीमते और भी बढ़ जाए .
खुले में शौच को रोकने के लिए घर घर शौचालय बनवाये जा रहे हैं,
जिससे पानी का उपयोग भी बढ़ जायेगा.
सरकार से निवेदन है की लोगो स्वच्छ पीने योग्य जल को वहा न प्रयोग करने के लिए भी जागरूक करे. क्युकी अगले कुछ दिनों में जो सबसे भयावह संकट आ सकता है वो पानी की किल्लत का होगा. इसके लिए कई शोध व् नयी टेक्नोलॉजी को भी बढ़ावा देना आवश्यक है की वो अशुद्ध पानी को फ्लश में प्रयोग करने व् नित्य कर्म के लिए सामान्य पानी यानी पीने के अयोग्य का प्रयोग होना सुनिश्चित करे .

मैं गांव मेरठ के एक छोटे से गांव सिखेड़ा का निवासी हूँ. यूँ तो हमारा गांव हर प्रकार से संपन्न था और फिलहाल  है भी किन्तु पिछले कुछ दिनों में जलस्तर बुरी तरह गिरा है, ...
हमारे गांव के पास से एक काली नदी बहा करती थी जो अब ख़त्म हो चुकी है या फिर फैक्ट्रीज के लिए नाले का काम करती है,नदी को कागजो पर पुनर्जीवित करने का काम पिछले कई दशक से किया जा रहा है कित्नु स्थिति बद से बदतर हो गयी है .

एक और तो हम हाथ धोने के बाद टंकी को बंद करने की सलाह देते हैं दूसरी और एक दिन में  यूँ टॉयलेट के इस्तेमाल से करोडो लीटर पानी की बर्बादी होती है..
गाँवो में तो एक शौच के बाद एक बाल्टी कम से कम  डाली ही जाती है यानि ६ लीटर पानी रोजाना एक समय में एक व्यक्ति इस्तेमाल क्र लेता है.

मेरा अनुरोध इस पानी को बचाने के लिए है ,,,ताकि हम इसे जितना कम व् पर्याप्त हो सके इस्तेमाल करे.
व्यक्तिगत स्तर  पर मैं जो कुछ कर सकता हूँ कर रहा हूँ किन्तु इसके लिए भी शायद  स्वच्छ भारत,व् शौचमुक्त भारत जैसे अभियान भविष्य में सरकार चलाये .

एक भारतीय
गौरव भारद्वाज







Friday, 4 August 2017

स्वच्छता पखवाड़े के उपलक्ष्य में युवाओ ने किया पौधरोपण


भारत सरकार द्वारा अगस्त माह के प्रथम पखवाड़े को स्वच्छता पखवाड़ा घोषित किया गया है I रजपुरा ब्लॉक में स्वच्छता पखवाड़े के अंतर्गत ब्लॉक के विभिन्न गाँवो में सफाई कार्यक्रम एवं पौधरोपण का कार्य किया जा रहा है I नेहरू युवा केन्द्र, युवा कार्यक्रम एवम् खेल मंत्रालय भारत सरकार के तत्वावधान में रजपुरा ब्लॉक के स्वयंसेवक गौरव भारद्वाज और अंशुल गुप्ता ने सिखेरा गांव में प्राथमिक विद्यालय में तथा सलारपुर में पौधरोपण किया Iविद्यालय के शिक्षकों ने पौधरोपण और स्वच्छता के बारे में बच्चो को जागरूक किया
कार्यक्रम की शुरुवात युवाओ को स्वच्छता की शपथ दिला कर की गयी I युवाओ को पर्यावरण की रक्षा में उनके योगदान की आवश्यकता के बारे में जागरूक किया गया I  कार्यक्रम में आज़ाद युवा मंडल के अरविन्द, रवि, आशीष, पंकज व् मेक ए  डिफरेंस यूथ क्लब के अश्वनी,विनीत,सौरव,प्रदीप आदि सहित काफी संख्या में युवाओ ने योगदान दिया।


Wednesday, 12 July 2017

औषिधीय पौधों का महत्व #ImportanceOfTrees #PaudhoKamahatva #KudratKaTohfa #Vrakshlagao #Vraksharopan #MedicalTrees #PedoSeDawa

औषिधीय पौधों का महत्व...



कुदरत के दिये गये वरदानों में पेड़-पौधों का महत्वपूर्ण स्थान है। पेड़-पौधे मानवीय जीवन चक्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिकानिभाते हैं। इसमें न केवल भोजन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ती ही होती बल्कि जीव जगत से नाजुक संतुलन बनाने में भी ये आगे रहते हैं-कार्बन चक्र हो या भोजना श्रृंखला के पिरामिड में भी ये सर्वोच्च स्थान ही हासिल करते हैं। इनकी उपयोगिता को देखते हुए इनको अनेक संवर्गों में बांटा गया है। इनमें औषधीय पौधे न केवल अपना औषधीय महत्व रखते हैं आय का भी एक जरिया बन जाते हैं। हमारे शरीर को निरोगी बनाये रखने में औषधीय पौधों का अत्यधिक महत्व होता है यही वजह है कि भारतीय पुराणों, उपनिषदों, रामायण एवं महाभारत जैसे प्रमाणिक ग्रंथों में इसके उपयोग के अनेक साक्ष्य मिलते हैं। इससे प्राप्त होने वाली जड़ी-बूटियों के माध्यम से न केवल हनुमान ने भगवान लक्ष्मण की जान बचायी बल्कि आज की तारीख में भी चिकित्सकों द्वारा मानव रोगोपचार हेतु अमल में लाया जाता है। यही नहीं, जंगलों में खुद-ब-खुद उगने वाले अधिकांश औषधीय पौधों के अद्भुत गुणों के कारण लोगों द्वारा इसकी पूजा-अर्चना तक की जाने लगी है जैसे तुलसी, पीपल, आक, बरगद तथा नीम इत्यादि। प्रसिध्द विद्वान चरक ने तो हरेक प्रकार के औषधीय पौधों का विश्लेषण करके बीमारियों में उपचार हेतु कई अनमोल किताबों की रचना तक कर डाली है जिसका प्रयोग आजकल मानव का कल्याण करने के लिए किया जा रहा है।

औषधीय पेड़–पौधे,जड़ी-बूटियां और उनके वानस्पतिक नाम

1 . नीम (Azadirachta indica)
एक चिपरिचित पेड़ है जो 20 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है इसकी एक टहनी में करीब 9-12 पत्ते पाए जाते है। इसके फूल सफ़ेद रंग के होते हैं और इसका पत्ता हरा होता है जो पक्क कर हल्का पीला–हरा होता है।अक्सर ये लोगो के घरों के आस-पास देखा जाता है।

2. तुलसी (ocimum sanctum):

तुलसी एक झाड़ीनुमा पौधा है। इसके फूल गुच्छेदार तथा बैंगनी रंग के होते हैं तथा इसके बीज घुठलीनुमा होते है। इसे लोग अपने आंगन में लगाते हैं ।
3 . ब्राम्ही/ बेंग साग (hydrocotyle asiatica):
यह साग पानी की प्रचुरता में सालो भर हरी भरी रहने वाली छोटी लता है जो अक्सर तालाब या खेत माय किनारे पायी जाती है। इसके पत्ते गुदे के आकार (1 /2 -2 इंच) के होते हैं। यह हरी चटनी के रूप में आदिवासी समाज में प्रचलित है ।
4 . ब्राम्ही (cetella asiatica):
यह अत्यंत उपयोगी एवं गुणकारी पौधा है । यह लता के रूप में जमीन में फैलता है। इसके कोमल तने 1-3 फीट लम्बी और थोड़ी थोड़ी दूर पर गांठ होती है। इन गांठो से जड़े निकलकर जमीन में चली जाती है। पत्ते छोटे,लम्ब,अंडाकार,चिकने,मोटे हरे रंग के तथा छोटे–छोटे होते हैं सफ़ेद हल्के नीले गुलाबी रंग लिए फूल होते हैं। यह नमी वाले स्थान में पाए जाते हैं ।

5 .हल्दी (curcuma longa):
हल्दी के खेतों में तथा बगान में भी लगया जाता है। इसके पत्ते हरे रंग के दीर्घाकार होते हैं।इसका जड़ उपयोग में लाया जाता है। कच्चे हल्दी के रूप में यह सौन्दर्यवर्द्धक है।सुखे हल्दी को लोग मसले के रूप में इस्तेमाल करे हैं। हल्दी रक्तशोधक और काफ नाशक है ।
6 . चिरायता / भुईनीम (Andrographis paniculata):
7. अडूसा:
यह भारत के प्रायः सभी क्षेत्रो में पाया जाता है।अडूसा का पौधा यह सालों भर हरा भरा रहनेवाला झाड़ीनुमा पौधा है जो पुराना होने पर 8-10 फीट तक बढ़ सकता है।इसकी गहरे हरे रंग की पत्तियां 4-8 इंच लम्बी और 1-3 इंच चौड़ी है। शरद ऋतू के मौसम में इसके अग्र भागों के गुच्छों में हल्का गुलाबीपन लिए सफ़ेद रंग के फूल लगते हैं।
8 . सदाबहार (Catharanthus roseus):
यह एक छोटा पौधा है जो विशेष देखभाल के बिना भी रहता है।सदाबहार का पौधा चिकित्सा के क्षेत्र में इसका अपना महत्त्व है।इसकी कुछ टहनियां होती है और यह 50 सेंटी मीटर ऊंचाई तक बढ़ता है। इसके फूल सफ़ेद या बैगनी मिश्रित गुलाबी होते हैं।यह अक्सर बगान, बलुआही क्षेत्रो, घेरों के रूप में भी लगया जाता है ।

9 . सहिजन / मुनगा(Moringa oleifera):
सहिजन एक लोकप्रिय पेड़ है।जिसकी ऊंचाई 10 मीटर या अधिक होतीसहिजन है । इसके छालों में लसलसा गोंद पाया जाता है। इसके पत्ते छोटे और गोल होते हैं तथा फूल सफेद होते हैं।इसके फूल पते और फल (जोकी) खाने में इस्तेमाल में लाये जाते हैं। इसके पत्ते (लौह) आयरन के प्रमुख स्रोत हैं जो गर्भवती माताओं के लिए लाभदायक है ।


10. हडजोरा
10.1-Tinospora cordifolia:
हड्जोरा /अमृता एक लता है।इसके पत्ते गहरे हरे
रंग के तथा हृदयाकार होते हैं।मटर के दानो के आकार के इसके फल कच्चे में हरे हाड़जोड़ा
तथा पकने पर गहरे लाल रंग होते हैं।यह लता पेड़ों , चाहरदीवारी या घरों के छतों पर आसानी से फैलती है।इसके तने से पतली पतली जड़ें निकल कर लटकती है ।
10.2 Vitis quadrangularis: हडजोरा का यह प्रकार गहरे हरे रंग में पाया जाता है।ये गुठलीदार तथा थोड़ी थोड़ी दूर पर गांठे होती है।इसके पत्ते बहुत छोटे होते हैं।जोड़ों के दर्द तथा हड्डी के टूटने तथा मोच आने पर इसका इस्तेमाल किये जाने के कारण इसे हडजोरा के नाम से जाना जाता है ।
11. करीपत्ता (Maurraya koengii):
करीपत्ता का पेड़ दक्षिण भारत में प्रायः सभी घरों में पाया जाता है। इसका इस्तेमाल करी का पौधा मुख्यता भोजन में सुगंध के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं।इसके पत्तों का सुगंध बहुत तेज़ होता है।इसकी छाल गहरे धूसर रंग के होती है इसके पत्ते अंडाकार, चमकीले और हरे रंग के होते हैं।इसके फूल सफ़ेद होते हैं एवं गुच्छेदार होते हैं।इसके फल गहरे लाल होते हैं जो बाद में बैगनी मिश्रित कालापन लिए होता है ।
12. दूधिया घास (Euphorbia hirat):
यह साधरणतः खेतों, खलिहानों, मैदानों में घासों के साथ पाया जाता है।दुधिया धास इसके फूल बहुत छोटे होते हैं जो पत्तों के बीच होते हैं।यह स्वाद में कडुवा होता है।इसकी छोटी टहनियों जी तोड़ने पर ढूध निकलता है जो लसलसा होता है ।
13. मीठा घास(Scoparia dulcis ):
यह बगान, खेतों के साथ पाया जाता है।इसके पत्ते छोटे होते हैं और फल छोटे-छोटे होते हैं जो राइ के दाने के बराबर देखने में लगते हैं।स्वाद में मीठा होने के कारण मीठा घास के रूप में जाना जाता है ।मीठा धास

14. भुई आंवला (phyllanthus niruri):
यह एक अत्यंत उपयोगी पौधा है जो बरसात के मौसम में यहाँ-* जनमते हैं। इस पौधे की ऊंचाई 1- 25 इंच ऊँचा तथा कई शाखाओं वाले होते हैं। पत्तियां आकार में आंवले की पत्तियों की सी होती है और निचली सतह पर छोटे छोटे गोल फल पाए जाते हैं।यह जाड़े के आरंभ होते होते पक जाते हैं और फल तथा बीज पककर झड जाते हैं और पौधे समाप्त होते हैं ।
15. अड़हुल (Hisbiscus rosasinensis):
अड़हुल का फूल लोगो के घरों में लगाया जाता है।यह दो प्रकार का होता है – लाल और सफ़ेद जो दवा के काम में लाया जाता है।अड़हुल का पत्ता गहरा हरा होता है।
16. घृतकुमारी/ घेंक्वार (Aloe vera):
यह एक से ढाई फूट ऊँचा प्रसिध्द पौधा है।इसकी ढाई से चार इंच चौड़ी,नुकीली एवं कांटेदार किनारों वाली पत्तियां अत्यंत मोटी एवं गूदेदार होती है पत्तियों में हरे छिलकेके नीचे गाढ़ा, लसलसा रंगीन जेली के सामान रस भरा होता है जो दवा के रूप में उपयोग होता है ।
17. महुआ (madhuka indica):
महुआ का वृक्ष 40-50 फीट ऊँचा होता है।इसकी छाल कालापन लिए धूसर रंग की तथा अन्दर से लाल होती है।इसके पत्ते 5- 9 इंच चौड़े होते हैं।यह अंडाकार,आयताकार, शाखाओं के अग्र भाग पर समूह में होते हैं। महुआ के फूल सफ़ेद रसीले और मांसल होते हैं।इसमे मधुर गंध आती है। इसका पका फल मीठा तथा कच्चा में हरे रंग का तथा पकने पर पीला या नारंगी रंग का होता है ।
18. दूब घास ( cynodon dactylon):
दूब घास 10 -40 सेंटी मीटर ऊँचा होता है।इसके पत्ते 2- 10 सेंटी मीटर 
लम्बे होते है इसके फूल और फल सालों भर पायी जाती है।दूब घास दो प्रकार के होते हैं – हरा और सफ़ेद हरी दूब को नीली या काली दूब भी कहते है

19. आंवला (Phyllanthus emblica):
इसका वृक्ष 5-10 मीटर ऊँचा होता है ।आंवला स्वाद में कटु, तीखे, खट्टे, मधुर , 
और कसैले होते हैं।अन्य फलों की अपेक्षा आंवले में विटामिन सी की मात्रा अधिक
होती है।उसके फूल पत्तीओं के नीचे गुच्छे के रूप में होती है।इनका रंग हल्का हरा तथा सुगन्धित होता है इसके छाल धूसर रंग के होते हैं।इसके छोटे पत्ते 10 – 13 सेंटी मीटर लम्बे टहनियों के सहारे लगा रहता है इसके फल फरवरी –मार्च में पाक कर तैयार हो जाते हैं जो हरापन लिए पिला रहता है ।
20. पीपल (Ficus religiosa):
पीपल विशाल वृक्ष है जिसकी अनेक शाखाएँ होती है।इनके पत्ते गहरे हरे रंग के हृदय आकार होती है।इनके जड़ , फल , छाल , जटा , दूध सभी उपयोग में लाये जाते हैं।हमारे भारत में पीपल का धार्मिक महत्त्व है ।
21. लाजवंती/लजौली (Mimosa pudica):
लाजवंती नमी वाले स्थानों में जायदा पायी जाती है इसके छोटे पौधे में अनेक शाखाएं होती है।इनके पत्ते को छूने पर ये सिकुड़ कर आपस में सट जाती है।इस कारण इसी लजौली नाम से जाना जाता है इसके फूल गुलाबी रंग के होते हैं ।
22. करेला (Mamordica charantia):
यह साधारणतया व्यव्हार में लायी जाने वाली उपयोगी हरी सब्जी है जो लतेदार होती है।इसका रंग गहरा हरा तथा बीज सफ़ेद होता है।पकने पर फल का रंग पिला तथा बीज लाल होता है।यह स्वाद में कड़वा होता है ।
23. पिपली (Piperlongum):
साधारणतया ये गरम मसले की सामग्री के रूप में जानी जाती है।पिपली की कोमल लताएँ 1-2 मीटर जमीन पर फैलती है ये गहरे हरे रंग के चिकने पत्ते 2-3 इंच लम्बे एवं 1-3 चौड़े हृदयाकार के होते हैं।इसके कच्चे फल पीले होते हैं तथा पकने पर गहरा हरा फिर काला हो जाता है।इसके फलों को ही पिपली कहते हैं ।
24. अमरुद (Psidium guayava):
अमरुद एक फलदार वृक्ष है।यह साधारणतया लोगों के घर के आंगन में पाया जाता है इसका फल कच्चा में हरा और पकने पर पिला हो जाता है।प्रकार – यह सफ़ेद और गुलाबी गर्भ वाले होते हैं।इसके फूल सफ़ेद रंग के होते हैं।यह मीठा कसैला , शीतल स्वादिस्ट फल है जो आसानी से उपलब्ध होता है ।
25. कंटकारी/ रेंगनी (Solanum Xanthocarpum):
यह परती जमीन में पाए जाने वाला कांटेदार हलकी हरी जड़ी है।इसके कांटेदार पौधे 5- 10 सेंटी मीटर लम्बी होती है।इसके फूल बैंगनी रंग के पाए जाते हैं।इसके फल के भीतर असंख्य बीज पाए जाते हैं ।
26. जामुन (Engenia jambolana):
जामुन एक उत्तम फल है।गर्मी के दिनों में जैसा आम का महत्व है वैसे ही इसका महत्व गर्मी के अंत मिएँ तथा बरसात में होता है।यह स्वाद में मीठा कुछ खट्टा कुछ कसैले होते हैं।जामुन कर रंग गहरा बैंगनी होता है ।
27. इमली (Tamarindus indica):
इमली एक बड़ा वृक्ष है जिसके पत्ते समूह में पाए जाते हैं जो आंवले के पत्ते की तरह छोटे होते हैं।इसका फल आरंभ में हरा पकने पर हल्का भूरा होता है यह स्वाद में खट्टा होता है
28. अर्जुन (Terminalia arjuna):
यह असंख्य शाखाओं वाला लम्बा वृक्ष है।इसके पत्ते एकदूसरे के विपरीत दिशा में होते हैं।इसके फूल समूह में पाए जाते हैं।तथा फल गुठलीदार होता है जिसमें पांच और से पंख की तरह घेरे होते हैं ।
29. बहेड़ा (Terminalia belerica):
बहेड़ा का पेड़ 15- 125 फीट ऊँचा पाया जाता है, इसका ताना गोल एवं आकार में लम्बा , 8 -35 फीट तक के घेरे वाला होता है।इसकी छाल तोड़ी कालिमा उक्त भूरी और खुरदुरी होती है।इसके फल, फूल, बीज, वृक्ष की छाल , पत्ते तथा लकड़ी सभी दवा के काम में आते हैं ।
30. हर्रे (Terminalia chebula):
यह एक बड़ा वृक्ष है।इसके फल कच्चे में हरे तथा पकने पर पीले धूमिल रंग के होते हैं।इसके फल शीत काल में लगते हैं जिसे जनवरी – अप्रैल में जमा किया जाता है।इसके छाल भूरे रंग के होते हैं।इसके फूल छोटे, पीताभ तथा फल 1-2 इंच लम्बे , अंडाकार होते हैं ।
31. मेथी (Trigonella foenum):
यह लोकप्रिय भाजिओं में से एक है। इनके गुणों के कारण इसका उपयोग प्रत्यक घर में होता है।इस पौधे की ऊंचाई 1- 1 ½ फीट होती है , बिना शाखाओं के।मेथी की भाजी तीखी, कडवी, और वायुनाशक है।छोटानागपुर में इसे सगों के साथ मिला कर खाने में इस्तेमाल किया जाता है ।इसमें लौह तत्त्व की मात्रा अधिक होती है ।
32. सिन्दुआर/ निर्गुण्डी (Vitex negundo):
यह झड़ी दार पौधा जो कभी कभी छोटा पेड़ का रूप ले लेता है।इसके पत्ते 5 -10 सेंटीमीटर लम्बी तथा छाल धूसर रंग का होता है इसके फूल बहुत छोटे और नीलेपन लिए बैंगनी रंग के होते हैं जो गुच्छे दार होते हैं इसके फाल गुठलीदार होते हैं जो 6 मिलीमीटर डाया मीटर से कम होते हैं और ये पकने पर काले रंग के होते हैं ।
33. चरैयगोडवा (Vitex penduncularis):
इसका पेड़ 10 – 18 मीटर ऊँचा होता है इसके तीन पत्ते एक साथ पाए जाते हैं। जो देखने में चिड़िया के पर की तरह लगते हैं इसलिए इसे चरैयगोडवा कहते हैं। इसके फूल सफ़ेद है।पीलापन के लिए * जो अप्रैल –जून माह में मिलते हैं।इसके फल अगस्त- सितम्बर माह में पाए जाते हैं ।
34. बैर (ज़िज्य्फुस jujuba):
बैर का वृक्ष कांटेदार होता है। इसके कांटे छोटे छोटे होते हैं तथा इसकी पतियाँ गोलाकार तथा गहरे हरे रंग की होती है।इसके फल कच्चे में हरे रंग तथा पकने पर लाल होते हैं।यह स्वाद में खट्टा मीठा तथा कसैला होता है ।
35. बांस (Bambax malabaricum):
बांस साधारणतया घर के पिछवाड़े में पाया जाता है यह 30 -50 मीटर ऊँचा बढ़ता है इसके पत्ते लम्बे और नुकीले होते हैं बांस में थोड़ी थोड़ी दूर पर गांठे होती है
36. पुनर्नवा / खपरा साग (Boerhavia diffusa):
यह आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान की एक महत्वपूर्ण वनौषधि है। पुनर्नवा के ज़मीन पर फैलने वाले छोटी लताएँ जैसे पौधे बरसात में परती जमीन , कूड़े के ढेरों , सड़क के किनारे , जहाँ –तहां स्वयं उग जाते हैं।गर्मीयों में यह प्राय: सुख जाते हैं पर वर्षा में पुन: इसकी जड़ से नयी शाखाएँ निकलती है।पुनर्नवा का पौधा अनेक वर्षो तक जीवित रहता है।पुनर्नवा की लता नुमा हल्के लाल एवं काली शाखाएं 5- 7 फीट तक लम्बी जो जाती है पुनर्नवा की पत्तियां 1 – 1 ¼ इंच लम्बी ¾ - 1 इंच चौड़ी, मोटी ( मांसल) और लालिमा लिए हरे रंग की होती है।फूल छोटे छोटे हल्के गुलाबी रंग के होते हैं।पुनर्नवा के पत्ते और कोमल शाखाओं को हरे साग के रूप में खाया जाता है।इसे स्थानीय लोग खपरा साग के रूप से जानते हैं ।
37. सेमल (Bombax malabaricum):
सेमल के पेड़ बडे मोटे तथा वृक्ष में कांटे उगे होते हैं इसकी शाखाओं में 5- 7 के समूह में पत्ते होते हैं।जनवरी –फ़रवरी के दौरान इसमें फूल आते हैं।जिसकी पंकुधियाँ बड़ी तथा इनका रंग लाल होता है बैशाख में फल आते हैं जिनके सूखने पर रूई और बीज निकलते है ।
38. पलाश (Butea fondosa):
पलाश के पेड़ 5 फीट से लेकर 15-20 फीट या ज्यादा ऊँचे भी होते हैं।इसके एक ही डंठल में तीन पत्ते एक साथ होते हैं।बसंत ऋतू में इसमे केसरिया लाल राग के फूल लगते हैं तब पूरा वृक्ष दूर से लाल दिखाई देता है ।
39. पत्थरचूर (Coleus aromaticus):
यह 1 मीटर ऊंचाई तक बढ़ता है।इसके पत्ते अन्य पत्तों की अपेक्षा कुछ मोटे चिकने और ह्र्द्याकार होती है।इसके फूल सफ़ेद या हल्के बैंगनी रंग के पाए जाते हैं ।
40. सरसों (Sinapis glauca):
सरसों खेतों और बागानों में विस्तृत रूप से खेती किया जाने वाला पौधा है।इस पौधे की ऊंचाई 1.5 मीटर तक होती है।इसके पते के आकार नुकिलेदार होते हैं। तथा फूल पीले रंग में तथा बीज को तेल निकालने के लिए इस्तमाल में लाते हैं ।
41. चाकोड़ (Cassia obtusifolia):
चाकोड़ स्थानीय लोगो में चकंडा के नाम से प्रसिद्ध है।इसके पत्ते अंडाकार होते हैं। तथा फूल छोटे और पीले रंग के होते हैं।इसके फल (बीजचोल) लम्बे होते है।चाकोड़ 1 मीटर तक ऊँचा होता है।यह सड़क किनारे, परती जमीन में पाया जाता है।
42. मालकांगनी/ कुजरी (Celastrus paniculatus):
यह झाड़ीनुमा लातेय्दर* और छोटे टहनियों के साथ पाया जाता है जो व्यास में (डायमीटर) 23 सेंटी मीटर और तक ऊंचाई 18 मीटर होती है। इसके पत्ते दीर्घाकार,अंडाकार और द्न्तादेदार* होते हैं।इसके फूल हरापन लिए पिला होता है।जिसका व्यास 3.8 मिली मीटर होता है। इसके बीज पूर्णतया नारंगी लाल बीजचोल के साथ लगे होते हैं ।
43. दालचीनी (Cinnamonum cassia):
यह मधुर, कडवी सुघंधित होती है।इस वृक्ष की छाल उपयोगी होती है।इसे गर्म मसले के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
44. शतावर (Asparagus racemosus):
यह बहुत खुबसूरत झाड़ीनुमा पौधा है।जिसे लोग सजाने के कम में भी लाते हैं।इसके पत्ते पतले , नुकिलेदार हरे-भरे होते हैं।इसके फूल देखने में बहुत छोटे – छोटे , सफ़ेद रंग के सुगन्धित होते हैं।इसके फल हरे रंग के होते है जो पकने पर काले रंग के हो जाते हैं।इसकी जड़ आयुर्वेद के क्षेत्र में उपयोगी है जो इस्तेमाल में लायी जाती है ।
45. अनार (punica granatum):
अनार झाड़ीनुमा पतली टहनियों वाला होता है। एक्स फूल लाल रंग का होता है।अनार स्वाद में मीठा , कसैलापन लिए हुए रहता है।इसके फल लाल और सेफ प्रकार के होते हैं। एक्से फूल फल तथा छिलका उपयोग में लाये जाते हैं ।

46. अशोक (Saraca indica):
यह सदाबहार वृक्ष है जो अत्यंत उपयोगी है। इसके पते सीधे लम्बे और गहरे रंग के होते हैं।इसे लोग शोभा बदने के लिए लगते है।इसके छाल धूसर रंग,स्पर्श करनी में कुर्दारी तथा अन्दर लाल रंग की होती है।यह स्वाद में कडवा , कसैला , पचने में हल्का रुखा और शीतल होता है ।
47. अरण्डी/ एरण्ड (Ricinus communis):
यह 7-10 फीट ऊँचा होता है। इसके पत्ते चौड़े तथा पांच भागों में बटें होते अरण्ड के पत्ते फूल बीज और तेल उपयोग में लाये जाते हैं।इसके बीजों का विषैला तत्त्व निकल कर उपयोग में लाये जाते हैं। यह दो प्रकार लाल और सफ़ेद होते हैं ।
48. कुल्थी/ कुरथी (Dolichos biflorus):
यह तीन पत्तीओं वाला पौधा होता है जिसमे सितम्बर- नवम्बर में फूल तथा अक्टूबर-दिसम्बर के बीच फल आते हैं।कुरथी कटु रस वाली,कसैली होती है।यह गर्म, मोतापनासक, और पथरी नासक है ।
49. डोरी (Bassia latifolia):
यह महुआ का फल है इसे तेल बनाने के काम में लाया जाता है इसकी व्याख्या आगे की गई है ।
50. चिरचिटी( Achyranthes aspera) :
एक मीटर या अधिक ऊँचा होता है।इसके पत्ते अंडाकार होते हैं इसके फूल 4-6 मिलीमीटर लम्बे , सफेद्पन लिए हुए हरे रंग या बैगनी रंग के होते हैं ।
51. बबूल (Acacia arabica):
बबूल का वृक्ष मध्यमाकार , कांटे दार होता है।इसके पत्ते गोलाकार और छोटे छोटे होते हैं।पत्तों में भी कांटे होते है इसके फूल छोटे गोलाकार और पीले रंग के होते हैं।इसकी फलियाँ लम्बी और कुछ मुड़ी हुई होती है। बबूल का गोंद चिकित्सा की दृष्टी से उपयोगी है।
52. कटहल (Artocarpus integrifolia):
कटहल के पेड़ से सभी परिचित हैं। इसका फल बहुत बड़ा होता है। कभी-कभी इसका वजन 30 किलो से भी ज्यादा होता है।स्थानीय लोगो में सब्जी और फल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके पेड़ की ऊंचाई 10 मीटर या उससे अधिक हो सकती है।यह एक छाया दर वृक्ष है। इसकी अनेक शाखाएँ फैली होती है ।

पेड़ों की महिमा के विभिन्न पहलू.... Workship of Trees in India. #LoveTree #PedoKiMahima

पेड़ों के प्रदूषण, बाढ़, सूखे, हरियाली, मिट्टी के कटाव के नियंत्रण, पर्यावरण, मौसम, प्राकृतिक सौंदर्य आदि के साथ घने संबंध को तो हम सब जानते ही हैं.


इसके अतिरिक्त पेड़ स्वास्थ्य और धार्मिक आस्था से भी जुड़े हुए हैं इसलिए, हमारे पूर्वजों ने समय-समय पर इनकी पूजा का प्रावधान रखा था. हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को पुनर्जन्म देने की बात शायद कभी नहीं भूली जा सकती. आज भी विभिन्न जड़ी-बूटियां हमारे स्वास्थ्य की सुरक्षा का प्रमुख साधन बनी हुई हैं. आज सरकार भी एलोपैथी के साथ-साथ होम्योपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा पद्यति को प्रोत्साहन देने में पहल कर रही है. आदिकाल से पेड़ों की अकथनीय महिमा को माना जाता रहा है और उनकी महिमा के प्रति धन्यवाद को प्रकट करने तथा उन्हें स्मरण रखने के लिए संभवतः धार्मिक आस्था और प्रकृति को पूजने के साथ जोड़ दिया गया है. आइए वर्षा और वन-महोत्सव के इस पुण्य अवसर पर करोड़ों पेड़ों में से कुछ पेड़ों के धार्मिक पहलू व महत्त्व को जानने का प्रयत्न करें..
आर्य प्रकृति की पूजा करते थे. पेड़-पौधे और प्रकृति की तमाम चीजों को ईश्वर के रूप में देखते थे आर्य. लेकिन, धीरे-धीरे इन रिवाजों का अर्थ बदलने लगा. लेकिन, आज भी कई रीति और रिवाज जिंदा हैं. जानिए ऐसे पेड़ों के बारे में जो आज भी पूजे जाते हैं, जिनका धार्मिक महत्त्व कायम है….

अशोक का पेड़
अशोक का पेड़ धर्म से जुड़ा है. धार्मिक ग्रंथ रामायण जब तक पढा जाएगा, अशोक के पेड़ से जुड़े धार्मिक रिवाज निभाए जाएंगे. सीता माता को रावण ने अशोक वन में रखा था. माना जाता है कि अशोक का पेड़ कष्ट दूर करता है या जो कष्ट नहीं देता.

बरगद का पेड़
हिंदू कल्चर में वट वृक्ष यानी बरगद का पेड़ बहुत महत्त्व रखता है. इस पेड़ को त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक माना जाता है. हिंदू धर्म में इस वृक्ष को जीवन और मृत्यु का प्रतीक माना जाता है. कहा जाता है कि इस पेड़ को कभी नहीं काटना चाहिए. मान्यता है कि निःसंतान दंपति इसकी पूजा करें तो उन्हें लाभ होता है.

बेल का पेड़
भगवान शिव से जुड़े होने के कारण बेल के पेड़ का भी काफी धार्मिक महत्त्व है. कहा जाता है कि भगवान शिव को अगर बेलपत्र चढ़ाया जाए तो वे प्रसन्न होते हैं. मंदिरों और घर के आसपास बेल का पेड़ शुभ माना जाता है.

बांस का पेड़
श्रीकृष्ण की कल्पना बिना बांसुरी के नहीं की जाती. बांसुरी बांस से बनती है. इसलिए बांस के पेड़ का भी काफी धार्मिक महत्त्व है. अगर मनुष्य अपने अहंकार का त्याग कर दे और अपने अंतर्मन को खाली छोड़ दे तो कहते हैं श्रीकृष्ण की बांसुरी आपको बांसुरी की ध्वनि से मोह लेगी.

केले का पेड़
केले के पेड़ काफी पवित्र माना जाता है और कई धार्मिक कार्यों में इसका प्रयोग किया जाता है. भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है, केले के पत्तों में प्रसाद बांटा जाता है. माना जाता है कि समृद्धि के लिए केले के पेड़ की पूजा अच्छी होती है.

नारियल का पेड़
किसी शुभ कार्य से पहले नारियल फोड़ना अच्छा होता है. कई देवी-देवताओं को नारियल चढ़ाया जाता है. कहते हैं 5 साल तक नारियल के पेड़ को पानी दीजिए और उसके बाद फल देखिए. कहते हैं, नारियल पर तीन काले निशान भगवान शिव की आंखें होती हैं.

आम का पेड़
हमारे देश में आम के पेड़ का खासा धार्मिक महत्त्व है. इसे काफी पवित्र माना जाता है. इसकी लकड़ी और पत्ते कई धार्मिक आयोजनों में इस्तेमाल किए जाते हैं. घर के दरवाजे पर आम के पत्ते लटकाए जाते हैं, हवन में आम की लकड़ी जलाई जाती है. कलश स्थापना में भी इसका इस्तेमाल होता है। वहीं, बसंत पंचमी के दिन आम के पूलों को प्रयोग देवी सरस्वती की आराधना के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं.

नीम का पेड़
नीम के पेड़ का औषधीय के साथ-साथ धार्मिक महत्त्व भी है. मां दुर्गा का रूप माने जाने वाले इस पेड़ को कहीं-कहीं नीमारी देवी भी कहते हैं. इस पेड़ की पूजा की जाती है. कहते हैं कि नीम की पत्तियों के धंएं से बुरी और प्रेत आत्माओं से रक्षा होती है.

पीपल का पेड़
संस्कृत भाषा में पीपल के पेड़ को अश्वत्था कहा जाता है. प्राचीन काल से इस पेड़ की पूजा होती है. कहते हैं कि बुद्ध ने पीपल के पेड़ के नीचे ही ज्ञान प्राप्त किया था. इसलिए इसे बोधि वृक्ष भी कहा जाता है. कहते हैं श्रीकृष्ण भी इसी के नीचे मरे थे, जिसके बाद कलियुग शुरू हुआ। कहा जाता है कि इस पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास है. महिलाएं पुत्र प्राप्ति के लिए इस पेड़ की पूजा करती हैं. पीपल के पेड़ को काटना अशुभ माना जाता है.

Wednesday, 10 May 2017

गंगा #AllAbouGanga #EssayOnGangaInHindi #AboutGangajiInHindi #GangaJi #GangaInHindi #HolyRiverOfIndia

गंगा

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भारत की सर्वाधिक महिमामयी नदी ‘गंगा’ आकाश, धरती, पाताल तीनों लोकों में प्रवाहित होती है। आकाश गंगा या स्वर्ग गंगा, त्रिपथगा, पाताल गंगा, हेमवती, भागीरथी, जाहन्वी, मंदाकिनी, अलकनंदा आदि अनेकानेक नामों से पुकारी जाने वाली गंगा हिमालय के उत्तरी भाग गंगोत्री से निकलकर नारायण पर्वत के पार्श्व से ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, प्रयाग, विंध्याचल, वाराणसी, पाटिलीपुत्र, मंदरगिरी, भागलपुर, अंगदेश व बंगदेश को सिंचित करती हुई गंगासागर में समाहित हो जाती हैं। वेद-पुराणों में कई नामों से गंगा का विशद् वर्णन उपलब्ध है। सागर के साठ हजार पुत्रों को तारने वाले इस गंगा जल में कभी कीड़े नहीं पड़ते और यह कभी बासी या दूषित नहीं होती। रूपकुंड के समीप मंदाकिनी नाम से इसका उद्गम एक बर्फीले झरने से हुआ है जो शनैःशनैः गर्जन-तर्जन करती हुई अलकनंदा और नंद प्रयाग में समा गई है। केल गंगा, विनायक के समीप से निकल कर पिंडार गंगा में देवल को महिमा मंडित करती है। समस्त प्रयागों में देवल का स्थान सर्वोपरि है। यहां शिवजी का सुन्दर मंदिर दर्शनीय है। देवल के लिए अल्मोड़ा औऱ कर्ण प्रयाग से पहुंचना सुगम है। गंगा देव प्रयाग से भागीरथी नाम से जानी जाती है। रुद्र प्रयाग में मंदाकिनी (गंगा) और अलकनंदा (गंगा) का संगम दर्शनीय है। जहां अलकनंदा में माना के पास सरस्वती समाहित होती हैं, उसे केशव प्रयाग कहा जाता है।

भारत में गंगा को “गंगा मैया” के नाम से जाना जाता है। वह पवित्र पावनी मानी जाती है। इसके तट पर वैदिक ऋचाओं से गुजरति आश्रम पनपे व आर्यों के बड़े-बड़े साम्राज्य स्थापित हुए। व्यास और बाल्मीकी के महाकाव्यों से, कालिदास और तुलसी की कविताओं से अनुप्राणित गंगा से पौराणिक साहित्य भी भंडार की तरह जुड़ा है।

कहा जाता है कि गंगा देवसरिता थी। उसके पिता हिमवान से देवताओं ने आवश्यकतावश मांग लिया था। एक बार उनके अधोवस्त्र उठने से जब राजार्षि महाभिष कामुक हो उठे तो पितामह ब्रह्मा ने दोनों को ही मृत्युलोक में जलधारण करने का शाप दे दिया।

कालान्तर में राजर्षि महाभिष, कुरू-कुल के सम्राट शांतनु हुए और गंगा हुई उनकी पत्नी। उनके गर्भ से आठ वसुओं का जन्म हुआ। सात वसुओं को मुक्ति देने के बाद अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार जब आठवें वसु का वध करने जा रही थीं कि राजा शांतनु के रोकने पर गंगा तुरंत वहां से चली गई। आठवां वसु ही देवव्रत, भीष्म पितामह के नाम से विख्यात हुआ।

भागीरथी ऋषिकेश, हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, प्रयाग काशी और पटना होते हुए गंगा वहां जा पहुंची जहां सगर के साठ हजार पुत्रों की राख पड़ी हुई थी। सगर पुत्रों को गंगा के स्पर्श से ही स्वर्गधाम प्राप्त हो गया।

गंगा के किनारे अनेक तीर्थ हैं- गंगोत्री, जहां भागीरथी का उद्गम हुआ, बदरीनाथ, जहां नर-नारायण की तपस्या हुई। देव-प्रयाग, जिस स्थल पर भागीरथी और अलकनंदा दोनों के संगम से गंगा बनी। ऋषिकेश, जिस स्थान पर वह पिता श्री हिमवान से अनुमति लेकर पधारी तथा हरिद्वार जिसे गंगा का द्वार कहा जाता है। तदुपरांत गंगा का तीर्थ है-कनखल, जिस स्थान पर सती ने दक्ष यज्ञ में आत्मदाह किया और शिव ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर डाला था, गढ़मुक्तेश्वर और सोरों, जिन स्थलों पर स्नान करने से मुक्ति मिलती है, प्रयाग जहां गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों का संगम होता है, काशी जो शिव भगवान की पुत्री है। गंगा सागर, सागर के पुत्रों का उद्धार करने वाली तीर्थ स्थली है।

गंगा के अनेक रूप हैं, अनेक कथाएं हैं। पुराणों ने गंगा को मोक्षदायिनी बताया है। गंगा त्रिपथगा भी है। स्वर्ग में अलकनंदा, पृथ्वी पर भागीरथी या जाहन्वी तथा पाताल में अधो गंगा (पाताल गंगा) के नाम से जानी जाती है।

पौराणिक प्रतीक कथाओं के साथ इतिहास भी जुड़ा हुआ है जैसे कि शांतनु एक धान्य होता है, आश्विन में उसे वर्षा का जल चाहिए। ऐसा जल ‘गांगेय जल’ कहलाता है। शांतनु और गांगेय जल के मिलन को विवाह कहते हैं। यही रूपक रचा जाकर मरतों के इतिहास में मिल गया। उसी प्रकार सागर के साठ हजार पुत्रों का तात्पर्य है सगर की जनता की संख्या जो अकाल में भूखी-प्यासी मर गई होगी। तब सागर से भागीरथ तथा अभियंत्रण के कठोर परिश्रम से पर्वतों को काट कर गंगा समतल पर लाई गई होगी। गंगा के उद्गम पर कुछ ऐसी जड़ी-बूटियां हैं जिनके स्पर्श करने से गंगा का पानी कभी सड़ता नहीं है और न कभी उसमें कीड़े पड़ते हैं।

शंकर की जटाओं से मतलब है हिमालय की चोटियां जो वर्षा के जल से लबालब हैं। उसी अभियंत्रण कला से हिमशिखरों पर अनेक सुंदर और सुदृढ़ सरोवरों का निर्माण हुआ। शिलाओं पर शिला रखकर उनके प्रवाह को भूमि के समतल मैदान की ओर मोड़ा गया। हिमालय की अधिकांश नदियों के उद्गम स्थल ऐसे ही सरोवर हैं जैसे रूप कुण्ड से ‘मंदाकिनी’, अनामकुंड से ‘धौली’ गंगा, हेमकुण्ड से ‘लक्ष्मण गंगा’ ‘गांधी’ सरोवर से ‘मंदाकिनी’ तथा सहस्त्र ताल से पिलग धारा तथा भिलंग नदियां जो प्रायः भागीरथी की सहायक नदियां ही हैं।

एक पौराणिक संदर्भ में कहा गया है कि शिव की जटाओं से मुक्त हो गंगा सात धाराओं में पृथ्वी पर उतरी, जिनमें तीन पूर्व की ओर और तीन पश्चिम की ओर प्रवाहित हुई और सातवीं धारा भागीरथी के पीछे-पीछे आई। मार्ग तय करती हुई जब यह जन्हु ऋषि के आश्रम में पहुंची तो अपने वेग में उसे बहा ले गई। तब देवता, गंधर्वों ने ऋषि की वंदना की और गंगा के अहम् के लिए क्षमा मांगी, ऋषि को अपनी जंघा चीरकर गंगा को मुक्त करना पड़ा। गंगा इसीलिए जान्हवी नाम से पुकारी जाती है।

प्रसिद्ध धार्मिक नगरी काशी (अब वाराणसी) गंगा के तट पर ही सुशोभित है। कशा यानी चमकने वाला से इसका नाम काशी रखा गया होगा, क्योंकि ‘वरुणा’ और ‘असी’ नामक दो नदियों के आधार पर ही आज इसे वाराणसी संज्ञा प्रदान की गई है। बनारस भी शायद उसी का बिगड़ा रूप है।

4,800 फुट की ऊंचाई पर भटवारी में शेषनाग का छोटा सा भग्नावस्था में मंदिर है। उनके चरणों से एक छोटी सी नदी नवला निकलती है और यहीं गंगा में विलय हो जाती है। इस स्थान को भास्करपुरी कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि सूर्य ने शिव की उपासना यहीं की थी।

श्री कंठ शिखर से क्षीर गंगा का निकास बताया जाता है। दक्षिण दिशा में हेमकूट पर्वत के पास उत्तरवाहिनी केदारगंगा भगीरथी में मिलती है जहां से भगीरथी रौद्र रूप लिए तीन धाराओं में बहकर ब्रह्मकुंड में गिर जाती है। यहां प्रवाह काफी तीव्र और उन्मत्त है। ब्रह्मकुंड के पास ही सूर्य कुंड और गौरी कुंड हैं यहां पर शिवजी ने भगीरथी को अपनी जटाओं में बांध लिया था। गौरी कुंड में जिस शिला पर भगीरथी गिरती है, उस शिला को शिवलिंग की मान्यता है। कहते हैं कि भगीरथी की गति कितनी ही तीव्र हो जाये यह शिला यहीं रहती है, उस पर चढ़कर ही जल आगे बढ़ता है।

महाभारत में इसे त्रिपयागामिनी, बाल्मीकि रामायण में त्रिपथगा और रघुवंश और शाकुन्तल में जिस्नोता कहा गया है। विष्णु-धर्मोत्तरपुराण में गंगा को त्रलोवय व्यापिनी कहा गया है। शिवस्वरोदय में इड़ा नदी को गंगा कहा गया है। पुराणों में गंगा को लोकमाता कहा गया है।

बाल्मीकी रामायण के अनुसार गंगा की उत्पत्ति हिमालय की पत्नी मैना से बतायी गई है। गंगा उमा से ज्येष्ठ थी। पूर्वजों के उद्धार के लिए भगीरथ ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए अत्यधिक कठोर तप किया। ब्रह्माजी ने भगीरथ को शंकरजी की आराधना के लिए कहा, क्योंकि गंगा के वेग को शंकरजी ही धारण कर सकते थे। एक वर्ष तक गंगा शंकरजी की जटाओं में ही भटकती रही। अन्त में शंकर ने एक जटा से गंगा धारा को छोड़ा। देव नदी गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे कपिल मुनि के आश्रम गयी और उन्होंने सागर पुत्रों का उद्धार किया।

देवी भागवत पुराण के अनुसार गंगा, लक्ष्मी, सरस्वती तीनों विष्णु की पत्नियां थीं। आपसी कलह के कारण सरस्वती और गंगा को पृथ्वी पर नदी के रूप में आना पड़ा।

श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्धानुसार राजा बलि से तीन पग पृथ्वी नापने के समय भगवान वामन का बांया चरण ब्रह्माण्ड के ऊपर चला गया, वहां ब्रह्माजी के द्वारा भगवान के पाद प्रच्छालन के बाद उनके कमण्डल में जो जलधारा स्थित थी वह उनके चरण-स्पर्श से पवित्र होकर ध्रुवलोक में गिरी और चार भागों में विभक्त हो गयी।

मंदाकिनी नदी के सिरे पर 11,750 फुट की ऊंचाई पर गढ़वाल जिले में बसा पावन केदारनाथ सुंदर प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर प्रमुख पर्यटक स्थल है। लगभग 2 कि.मी. लम्बी व आधा कि.मी. चौड़ी यह बर्फ की घाटी ऊंचे पर्वतों से घिरी रंगभूमि पशु-पक्षी विहार जैसा लगता है। यहां पर हिमगिरी के भव्य दृश्य रोमांचित कर देते हैं।

बद्रीनाथ की तरह केदारनाथ का मौसम भी वर्ष भर ठण्डा रहता है। शीत ऋतु में तो अनवरत हिमपात रहता है। मई-जून, सितम्बर-अक्तूबर के महीने ही यहां पर्यटन के अनुकूल हैं। गौरी कुण्ड पहुंचने के बाद आगे 14 कि.मी. की दूरी पैदल पार करनी पड़ती है।

गोविन्दघाट से आगे देवों की वाटिका के अन्दर पुष्पवती नामक नदी बहती है। हिमानियों से अनेक फूटी हुई धाराओं और झरनों से पुष्पवती के जल की अभिवृद्धि होती है जो घंघरिया में लक्ष्मण गंगा में जाकर समाहित हो जाती है। लक्ष्मण गंगा, घंघरिया से 5 कि.मी. ऊपर लोकपाल झील से निकली है।

भारतीय संस्कृति की गंगा का जन्म कैसे भी हुआ हो, पर मनुष्य की पहली बस्ती उसकी तट पर आबाद हुई। पामीर के पठारों में गौरवर्णीय सुनहरे बालों वाली आर्य जाति का इष्ट देवता था वरुण। इस जाति की विशेषता थी अमूर्त का चिंतन और खोज। अग्निहोत्र के प्रचलन वाली इस जाति के अनुयायी नरबलि की पद्धति को अपनाते थे। उनके नेता राजा पुरूरवा ने गंगा संगम पर एक बस्ती बसायी जिसे प्रतिष्ठान का नाम दिया उसी के समय में एक और गंधर्व नामक दोनों शाखाएं मीलकर एक हो गई। तभी भारतीय संस्कृति की नींव पड़ी। एलों ने नरबलि छोड़कर अग्निहोत्र को अपना लिया। गंगा की पावन धारा में स्नान कर वह पवित्र हो गये। ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ से संघर्ष करने वाले विश्वामित्र की पुत्री शकुन्तला का विवाह चन्द्रवंशी राजा दुष्यंत से हुआ और उनके पुत्र भरत ने पहली बार इस देश को भारत नाम देकर एक सूत्र में बांधा। सूर्यवंशी भगीरथ ने गंगा के आदि और अंत की खोज की थी।


गंगा के तट काशी में जैन तीर्थकंर पार्श्वनाथ का प्रादुर्भाव हुआ तो वहीं सारनाथ में तथागत बुद्ध ने पहला उपदेश दिया। पाटलिपुत्र में नंद साम्राज्य का उदय हुआ तो चाणक्य ने अर्थशास्त्र की रचना एवं सम्राट चन्द्रगुप्त के साम्राज्य का निर्माण किया। सम्राट अशोक ने इसी पाटलिपुत्र में अहिंसा और प्रेम के आदेश प्रसारित किए। फिर मौर्यों के बाद आए शुंग तथा तब अश्वमेध यज्ञ होने लगे। शास्त्र और स्मृतियां रची गईं। रामायण और महाभारत इसी काल में पूर्ण हुए। महाभाष्यकार पतंजलि भी इसी समय हुए नागों के भारशिव राजवंश ने गंगा को अपना राज्य चिन्ह बनाया। दस अश्वमेध यज्ञ किये। दशाश्वमेध घाट इसकी स्मृति का ही प्रतीक है। समुद्रगुप्त की दिग्विजय और चन्द्रगुप्त के पराक्रम के साथ सम्राट हर्षवर्धन ने संस्कृति को एक नई दिशा प्रदान की। गंगा के तट पर ही राष्ट्रकूट वंश के ध्रुव ने फिर से इन प्रदेशों को जीत कर गंगा को अपना राज चिन्ह बनाया। अबुलफजल, इब्नेबतूता और बर्नियर महर्षि चरक, बाणभट्ट प्रभृति विशेषज्ञ विद्वजनों को भी गंगा तट पर रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गंगा के अंचल में ही आयुर्वेद का जन्म हुआ। शेरशाह ने माल बंदोबस्त का क्रम गंगा के किनारे पर ही चलाया। महानगर कोलकाता गंगा के किनारे ही विकसित हुआ। राजा राममोहनराय से लेकर दयानंद सरस्वती तक के नए सुधार आंदोलन यहीं पर शुरू हुए।

उत्तर भारत के बड़े भाग को सिंचित करने वाली गंगा यदि न होती तो प्राकृतिक दृष्टि से यह प्रदेश एक विशाल मरूस्थल हुआ होता। राम की सरयू, कृष्ण की यमुना, रति देव की चम्बल, गजग्राह की सोन, नेपाल की कोसी, गण्डक तथा तिब्बत से आने वाली ब्रह्मपुत्र सभी को अपने में समेटती हुई और अलकनंदा, जाहन्वी, भागीरथी, हुगली, पदमा, मेघना आदि विभिन्न नामों से जानी जाने वाली गंगा अंत में सुंदरवन के पास बंगाल की खाड़ी में समा जाती हैं।

पृथ्वी पर आकर उसे स्वर्ग बनाने वाली गंगा को भारतवासी अपनी मां की तरह पूजते हैं और प्यार करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने ठीक ही कहा है-

कीरति, मणिति, मेलि सोई।
सुरसरि सम सब कर हितु होई।।


गंगा नदी 2,523 किलोमीटर की अपनी लम्बी यात्रा के दौरान ऐसे कई बड़े शहरों से होकर गुजरती है, जहां की आबादी का घनत्व बहुत अधिक है और यहां बेशुमार कारखाने व फैक्टरियां हैं, जो गंगा में बढ़ते रहे प्रदूषण का कारण है। वैसे गंगा प्रदूषण मुक्त अभियान से काफी कुछ आशाएं भी बलवती हो रही है।

चक्षुभद्रा सरिता ब्रह्मलोक से चलकर गन्धमादन के शिखरों पर गिरती हुई पूर्व दिशा में चली गयी है। अलकनंदा अनेक पर्वत-शिखरों को लांघती हुई, हेमकूट से गिरती हुई, दक्षिण में भारतवर्ष चली आयी। चक्षु नदी माल्यवान शिखर से गिरकर केतुमालवर्ष के मध्य से होकर पश्चिम में चली गई। भद्रा नदी गिरि शिखरों से गिरकर उत्तर कुरूपर्ष के मध्य से होकर, उत्तर दिशा में चली गयी।

विंध्यगिरि के उत्तर भाग में इन्हें भगीरथी गंगा कहते हैं और दक्षिण में गौतमी गंगा (गोदावरी) कहते हैं।

Wednesday, 22 March 2017

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कौन था ? जिसने मात्र 3 साल की उम्र में अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था | Bhagat Singh की पूरी कहानी

हमारी आजादी को 70 दशक हो चुके है और हम चैन और अमन के साथ अपने परिवार के साथ रहते है। पर इस आजादी के पीछे कितने वीरों और वीरांगनाओ ने कुर्बानियों दी है, उसे हम गिन नहीं सकते। इन्हीं वीरों में से एक नाम प्रमुख है, वह है Bhagat Singh। वे देश की आजादी के लिए इतने दीवाने थे कि जब वे मात्र तीन साल के थे, तभी से भारतमाता के दामन से गुलामी जंजीरों को तोड़ने के लिए अपने प्रयास शुरू कर दिये थे और जवान होते-होते मात्र 23 साल की अल्प आयु में आजादी के लिए अंग्रेजों की फांसी पर हंसते-हंसते चढ़ गए।
आइये फ्रेंड इस Hindi Biography द्वारा आजादी के मतबाले Bhagat Singh की वीर कहानी को जानते है…

Bhagat Singh  Hindi Biography


Family

भगत सिंह का जन्म पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान में) के बंगा गाँव के आर्य समाजी सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता किशन सिंह एक क्रांतिकारी थे और उनकी माँ विद्यावाती कौर एक धार्मिक महिला थी।
जिस दिन Bhagat Singh का जन्म हुआ था, उसी दिन भारत माता की आजादी के लिए संघर्षरत रहे उनके पिता व चाचा जेल से छूटे थे और तीन दिन बाद उनके दोनों चाचाओं की भी जमानत पर रिहाई हुई। इसलिए उनके दादा अर्जुन सिंह और दादी जयकौर ने उन्हें भागों वाला कहकर बुलाते थे, जो बाद में भगत सिंह नाम से जाना जाने लगे।

Childhood

कहते है पूत के पाँव पालने में ही नजर आ जाता है, इसका प्रमाण उनके एक प्रसिद्ध घटना से मिलता है, जब वे मात्र तीन साल के थे, तब एक दिन वे अपने पिता के साथ पिता के मित्र नन्द किशोर मेहता के खेत पर गए। वहाँ दोनों दोस्त बातों में मशगूल हो गए और नन्हें भगत सिंह भी अपने खेल में मस्त हो गए।
तभी नन्द किशोर मेहता का ध्यान छोटे बालक के खेल पर गया। वे मिट्टी के ढेरों पर छोटे-छोटे तिनके लगाए जा रहे थे।
उनके इस खेल को देखकर मेहता जी बड़े स्नेह से उनसे बातें करने लगे –
“तुम्हारा क्या नाम है”
“भगत सिंह”
“तुम क्या करते हो?”
“मैं बंदुके बेचता हूँ।”
“बंदूकें…?”
“हाँ, बंदूकें।”
“वह क्यों ?”
“अपने देश को आजाद कराने के लिए।”
“तुम्हारा धर्म क्या है ?”
“देशभक्ति ! देश की सेवा करना।”
मेहता जी छोटे बालक के बातों से बड़े प्रभावित हुए और गर्व से उन्हें अपने गोद में उठा लिया और सरदार किशन सिंह से बोले,
भाई ! तुम बड़े भाग्यशाली हो, जो तुम्हारे घर में ऐसे वीर और होनहार बालक ने जन्म लिया।
उनका बचपन ऐसी कई वीर कहानियों से भरा-पड़ा है, जो भारतमाता का असली लाल होने का प्रमाण देता है।

Education
पाँच वर्ष की आयु में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा पैतृक गाँव बंगा के जिला बोर्ड प्राइमरी स्कूल में हुई। जब वे ग्यारह वर्ष के थे, तब उनके साथ पढ़ रहे उनके बड़े भाई जगत सिंह का आकस्मिक निधन हो गया।
इसके बाद उनका पूरा परिवार लाहौर के पास नवाकोट में रहने के लिए चले गए। वहाँ उनकी पढ़ाई लाहौर स्थित डी ए वी स्कूल से होने लगी।
उनके दादा चाहते तो उन्हें पढ़ने के लिए विदेश भेज सकते थे, पर क्रांतिकारी भावना से ओत-प्रोत स्वाभिमानी अर्जुन सिंह ने क्रांतिकारी विचारधारा के लिए  विख्यात इस डी ए वी स्कूल को ही चुना।

जालियावाला बाग कांड

इसी दौरान, 13 अप्रैल 1919 को जालियावाला बाग में रोलेक्ट एक्ट के खिलाफ लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था, तब अंग्रेजी सैनिक आई और जनरल डायर के आदेश पर बाग में मौजूद निहत्थे बच्चे, बूढ़ों और महिलायों पर अंधाधुंध गोलीयां चलाई और तुरंत ही चीख पुकार आवाजों के बीच धरती रक्त से सन गई।
इस घटना ने 12 साल के कोमल मन को कठोरता की नई पहचान देते हुए पूरी तरह से आक्रोश से भर दिया और उन्होंने खून से सने मिट्टी को छु कर कसम खाई कि वह इन बेकसूर लोगों के निर्मम हत्या का बदला लेकर रहेंगे।
इस कारण उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा और नौवी क्लास की पढ़ाई बीच में छोड़ते हुए सन 1921 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े।

क्रांतिकारी कॉलेज

यहाँ उनकी मुलाक़ात आजादी के दीवाने लाला लाजपतराय से हुई, जिनसे प्रभावित होते हुए उनके द्वारा लाहौर में स्थापित नेशनल कॉलेज में पढ़ाई करने लगे।
उन दिनों यह कॉलेज क्रांतिकारियों का सबसे बड़ा गुरुकुल और गढ़ माना जाता था, जहां उनकी मुलाक़ात रामकिशन, सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों से हुई।
इस कॉलेज में लाला लाजपत, परमानंद और जयचंद विद्यालंकार अपने क्रांतिकारी लेक्चर से स्टूडेंटस में देश-भक्ति का संचार किया करते थे।
भगत सिंह अपनी अटूट देशभक्ति के कारण जल्द ही अपने गुरुयों के प्रिय शिष्य बन गए, विशेषकर प्रो॰ विद्यालंकार के। जिन्हें भगत सिंह का राजनीतिक गुरु भी माना गया।
इन्हीं दिनों घरवालों द्वारा उनपर शादी का दवाब बनाया जा रहा था तो उन्होंने यह कहते हुए शादी करने से इंकार कर दिया कि
मैं अपना जीवन इस देश के आजादी के लिए समर्पित कर चुका हूँ। अब इस जीवन में किसी भी  सांसारिक इच्छा की कोई जगह नहीं है।

आजादी के लिए दीवानगी

और 1924 में बीए की पढ़ाई बीच में छोड़ आजादी आंदोलनों में सक्रिय रूप से कूद पड़े।
30 अक्तूबर, 1928 को इन आजादी के दीवानों की पहली परीक्षा की घड़ी आ गई, जब लाला लाजपत राय के नेतृत्व में भगत सिंह अपने साथियों के साथ साईमन कमीशन के लाहौर आगमन का अहिंसात्मक विरोध करने लगे।
इस घटना में अंग्रेजी सेना के द्वारा लाला लाजपत राय के सिर पर डंडों का अगण्य बार किया गया, जिसके कारण वे गंभीर रूप से घायल हो गए और 17 नवंबर 1928 को स्वर्ग सिधार गए।
जिसका बदला लेने के लिए क्रांतिकारियों के खून में जबर्दस्त उबाल आ गया। इसी मंशा से क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी अधिकारी स्कॉट की हत्या की साजिस रची और प्लान के अनुसार भगत सिंह, जयगोपाल और राजगुरु ने 17 दिसंबर 1928 को धोखे से स्कॉट की जगह सांडर्स को मौत की नींद सुला दिए।

असेंबली बम कांड

और आगे अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखते हुए वे अंग्रेजी हुकूमत को नींद से जगाने और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भारतवाशियों पर हो रहे अत्याचार से परिचित कराने के मंशा से असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई।
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह, राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली के सुरक्षा कर्मियों को धोखा देते हुए बालकनी पर से हानिकारक तत्वों से रहित हल्के बम्बों को असेंबली के खाली परागण में फेंके।

गिरफ्तारी

और स्वेच्छा गिरफ्तार हो गए, जबकि चंद्रशेखर आजाद चाहते थे कि भगत सिंह राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त घटनास्थल से भाग जाए, क्योंकि देश कि आजादी के लिए उनकी जरूरत थी।
पर हठी Bhagat Singh कहां मनाने वाले थे, इस घटना के बाद उनपर कई बार मुकदमें-बाजी हुई।

जेल जीवन

मुकदमें के दौरान ये आजादी के दीवाने अपने मस्ती में मशगूल रहते और पूरे कोर्ट परिसर को इंकलाब जिंदाबाद के नारों से गुंजायमान कर देते थे।
चूंकि इन दीवानों का मुकदमा जितना कोई लक्ष्य नहीं था, ये तो उनका शासन के नशे में सोये अंग्रेजी हुकूमत को जगाने का प्रयास था।
भारत माता के तीनों वीरों ने जेल में कितने ही कष्ट सहे पर कभी भी जीवन में उल्लास और हंसी ठिठोली से मुंह नहीं मोड़ा। वे सभी किसी मतवाले हाथी तरह अपना जीवन जी रहे थे।
तारीख के दौरान माँ विद्यावती बच्चों को कुछ खिलाने के लिए लाती तो Bhagat Singh कहते थे, पहले बटुकेश्वर को खिलाओ। ऐसा अटूट प्रेम था।
शहीद भगत सिंह अपने जज़्बातों के बारे में कहते है,
मेरी कलम, मेरे जज़्बातों को इस कदर जानती है कि मैं ईश्क भी लिखना चाहूँ तो इंकलाब ही लिखा जाता है।
और अंत में उन्हें और उनके साथियों को23 मार्च 1931 को फांसी की सज्जा सुनाई गई।
उनके वकील प्राणनाथ मेहता के संस्मरणों के अनुसार फांसी के दिन Bhagat Singh ने जेलरों से रसगुल्ले की फरमाइश की। यहीं उनके जीवन का अंतिम भोजन था।
इसके बाद वे लेनिन की जीवनी पढ़ने में लिन हो गए और कुछ देर बाद जेल का दरवाजा खुला और अधिकारी ने कहा,
सरदार जी, फांसी लगाने का हुक्म आ गया है।
उन्होंने कहां,
जरा ठहरों, एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है
फिर जो प्रसंग वे पढ़ रहे थे, उसे समाप्त करके पुस्तक रख दी और बोले,
चलों।
फिर तीनों दीवाने भगत, सुखदेव और राजगुरु बाहर निकले और अंतिम बार गले मिले।
और दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फ़त…!
गीत गाते हुए फांसी स्थल पर पहुंचे और अंतिम बार इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद के नारा लगाए और फांसी की रस्सी कसी और तख्त खुलते ही तीन झूल गए और सदा के लिए भारतमाता के प्यारे हो गए।

Quick Fact

Bio Data

Name – Bhagat Singh
Date of Birth – September 28, 1907
Birth of Place – Banga, Punjab Province
Date of Death – March 23, 1931
Death of Place – Lahore, Punjab

Family

Father – Sardar Kishan Singh
Mother – Vidyavati Kaur

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