Thursday, 5 October 2017

पौधरोपण का महत्व || आप प्रकृति को बचाओ बाकी सब कुछ स्वयं बच जाएगा || वृक्षारोपण से लाभ #Plantation #SikheraMeerut #RajpuraBlockNYV

आप प्रकृति को बचाओ बाकी सब कुछ स्वयं बच जाएगा ....
जब से दुनिया शुरू हुई है, तभी से इंसान और क़ुदरत के बीच गहरा रिश्ता रहा है। पेड़ों से पेट भरने के लिए फल-सब्ज़ियां और अनाज मिला। तन ढकने के लिए कपड़ा मिला। घर के लिए लकड़ी मिली। इनसे जीवनदायिनी ऑक्सीज़न भी मिलती है, जिसके बिना कोई एक पल भी ज़िन्दा नहीं रह सकता। इनसे औषधियां मिलती हैं। पेड़ इंसान की ज़रूरत हैं, उसके जीवन का आधार हैं। अमूमन सभी मज़हबों में पर्यावरण संरक्षण पर ज़ोर दिया गया है। भारतीय समाज में आदिकाल से ही पर्यावरण संरक्षण को महत्व दिया गया है। भारतीय संस्कृति में पेड़-पौधों को पूजा जाता है। विभिन्न वृक्षों में विभिन्न देवताओं का वास माना जाता है। पीपल, विष्णु और कृष्ण का, वट का वृक्ष ब्रह्मा, विष्णु और कुबेर का माना जाता है, जबकि तुलसी का पौधा लक्ष्मी और विष्णु, सोम चंद्रमा का, बेल शिव का, अशोक इंद्र का, आम लक्ष्मी का, कदंब कृष्ण का, नीम शीतला और मंसा का, पलाश ब्रह्मा और गंधर्व का, गूलर विष्णू रूद्र का और तमाल कृष्ण का माना जाता है। इसके अलावा अनेक पौधे ऐसे हैं, जो पूजा-पाठ में काम आते हैं, जिनमें महुआ और सेमल आदि शामिल हैं। वराह पुराण में वृक्षों का महत्व बताते हुए कहा गया है- जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, एक बड़, दस फूल वाले पौधे या बेलें, दो अनार दो नारंगी और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह नरक में नहीं जाएगा।

यह हैरत और अफ़सोस की ही बात है कि जिस देश में, समाज में पेड़-पौधों को पूजने की प्रथा रही है, अब उसी देश में, उसी समाज में पेड़ कम हो रहे हैं। बदलते दौर के साथ लोगों का प्रकृति से रिश्ता टूटने लगा। बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वृक्षों को काटा जा रहा है। नतीजतन जंगल ख़त्म हो रहे हैं। देश में वन क्षेत्रफल 19.2 फ़ीसद है, जो बहुत ही कम है। इससे पर्यावरण के सामने संकट खड़ा हो गया है। घटते वन क्षेत्र को राष्ट्रीय लक्ष्य 33.3 फ़ीसद के स्तर पर लाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा वृक्ष लगाने होंगे। साथ ही ख़ुशनुमा बात यह भी है कि अब जनमानस में पर्यावरण के प्रति जागरूकता आ रही है। लोग अब पेड़-पौधों की अहमियत को समझने लगे हैं। महिलाएं भी इस पुनीत कार्य में बढ़ चढ़कर शिरकत कर रही हैं।

बच्चो को पौधरोपण के लिए प्रोत्साहित करते हुए स्वयं भी यही अनुभूति हुई .

इस वैश्विक महामारी कोरोना ने ऑक्सीजन के लिए इंसान को दर- बदर भटकने को मजबूर कर दिया, या यूं कहें कि वृक्षों ने उन्हें अपनी औकात बता दिया। 

 हरियाली से ही जीवन बनता है। क्योंकि जीवन जीने के लिए हमें शुद्ध आक्सीजन की आवश्यकता होती है ।

जो हमें केवल पेड़ों से ही प्राप्त होती है।   लोगों को पौधरोपण के लिए प्रेरित करें। इससे यह प्रेरणा मिलती है, कि जीवनदायिनी ऑक्सीजन को बचाने और उसका भविष्य में सदुपयोग होगा। इसके लिए सभी को आगे बढ़कर पौधरोपण करना चाहिए।  बबूल एक ऐसा प्राकृतिक ट्री गार्ड है जो पौधों को भेड़ बकरियों से सुरक्षा प्रदान करती है।



शौचालय में पानी को व्यर्थ बहाने से रोका जाना आवश्यक #SaveWaterInToilet #WaterInToilet

माननीय भारत ,

हम सब कुछ क्रर सकते हैं किन्तु बिन पानी के नहीं जी सकते.  कल तक मुफ्त में प्रकृति का दिए ये उपहार आज बोतलों में २०-२० रूपये में बिकने लगा है ; कल को शायद कीमते और भी बढ़ जाए .
खुले में शौच को रोकने के लिए घर घर शौचालय बनवाये जा रहे हैं,
जिससे पानी का उपयोग भी बढ़ जायेगा.
सरकार से निवेदन है की लोगो स्वच्छ पीने योग्य जल को वहा न प्रयोग करने के लिए भी जागरूक करे. क्युकी अगले कुछ दिनों में जो सबसे भयावह संकट आ सकता है वो पानी की किल्लत का होगा. इसके लिए कई शोध व् नयी टेक्नोलॉजी को भी बढ़ावा देना आवश्यक है की वो अशुद्ध पानी को फ्लश में प्रयोग करने व् नित्य कर्म के लिए सामान्य पानी यानी पीने के अयोग्य का प्रयोग होना सुनिश्चित करे .

मैं गांव मेरठ के एक छोटे से गांव सिखेड़ा का निवासी हूँ. यूँ तो हमारा गांव हर प्रकार से संपन्न था और फिलहाल  है भी किन्तु पिछले कुछ दिनों में जलस्तर बुरी तरह गिरा है, ...
हमारे गांव के पास से एक काली नदी बहा करती थी जो अब ख़त्म हो चुकी है या फिर फैक्ट्रीज के लिए नाले का काम करती है,नदी को कागजो पर पुनर्जीवित करने का काम पिछले कई दशक से किया जा रहा है कित्नु स्थिति बद से बदतर हो गयी है .

एक और तो हम हाथ धोने के बाद टंकी को बंद करने की सलाह देते हैं दूसरी और एक दिन में  यूँ टॉयलेट के इस्तेमाल से करोडो लीटर पानी की बर्बादी होती है..
गाँवो में तो एक शौच के बाद एक बाल्टी कम से कम  डाली ही जाती है यानि ६ लीटर पानी रोजाना एक समय में एक व्यक्ति इस्तेमाल क्र लेता है.

मेरा अनुरोध इस पानी को बचाने के लिए है ,,,ताकि हम इसे जितना कम व् पर्याप्त हो सके इस्तेमाल करे.
व्यक्तिगत स्तर  पर मैं जो कुछ कर सकता हूँ कर रहा हूँ किन्तु इसके लिए भी शायद  स्वच्छ भारत,व् शौचमुक्त भारत जैसे अभियान भविष्य में सरकार चलाये .

एक भारतीय
गौरव भारद्वाज