Tuesday, 3 February 2015

एक समय की बात है,  एक चिड़ा और चिड़िया पेड़ पर घोंसला बना कर रहते थे। पतझड़ का मौसम था। दोनों ने मिलकर फलों के बीजों को इकट्ठा किया और अपने घोंसले में रख लिया। धीरे-धीरे बीज सूखते रहे। जो घोंसला भरा हुआ था,  वह आधा रह गया। चिड़े को यह देखकर गुस्सा आया। उसने चिड़ी को कहा,  ‘हम दोनों इन फलों के लिए मेहनत कर रहे थे। तुमने इन्हें अकेले ही खा लिया। इस काम में आधी मेहनत मेरी भी थी।’ चिड़ी ने कहा,  ‘मैंने कुछ नहीं खाया। फल अपने आप सूख गए हैं।’

चिड़े का गुस्सा चरम पर था।  वह बोला- यदि तुमने इन्हें अकेले नहीं खाया है तो ये इतने कम कैसे हो गये। इसी गुस्से में उसने चिड़ी को मार दिया। कुछ समय बाद जब बारिश हुई और मौसम में नमी आयी,  तो फल वापस अपने आकार में आ गए। घोंसला फिर भर गया। चिड़े को अपनी भूल का एहसास हुआ,  पर अब देर हो गयी थी। यह समस्या मानव स्वभाव की भी है। अव्यवस्थित जिंदगी को जीते हुए हम क्षणिक खुशियों को ही जीवन मान लेते हैं। इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण संबंधों को तोड़ते हुए भी नहीं सोचते। किसी को नुकसान पहुंचाने में भी नहीं हिचकते। - See more at: http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/technologyscience/article1-Time-matter-bird-tree-nest-67-70-468083.html#sthash.UvPBVcnA.dpuf

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