उपनाम : | 'आजाद', |
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जन्मस्थल : | भाबरा गाँव (चन्द्रशेखर आज़ादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला)[1][2] |
मृत्युस्थल: | चन्द्रशेखर आजाद पार्क, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश |
आन्दोलन: | भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम |
प्रमुख संगठन: | हिदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन-के प्रमुख नेता (१९२८) |
सन् १९२२ में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले ९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् १९२७ में 'बिस्मिल' के साथ ४ प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।
Story of Death Of Chandrashekhar Azad
साँझ की बेला में दुआर बुहारती जगरानी के आसपास जब लोगों की भीड़ खड़ी होने लगी तो अशुभ की आशंका से उनका हृदय काँप उठा। उन्होंने सर उठा कर कुछ लोगों का मुह निहारा, सबके मुखड़े जैसे रो रहे थे। एकाएक सन्न हो उठे कलेजे को थाम कर उन्होंने पूछा- क्या चन्दू को पुलिस ने पकड़....?
कहीं से कोई उत्तर नहीं मिला। जगरानी जैसे काँप उठीं... उनके मुह से आह फूटी-" तो चन्दू की प्रतिज्ञा टूट गयी?"
पीछे से किसी उत्साहित युवक ने कहा- नहीं माँ! चन्दू भइया की प्रतिज्ञा तोड़ दे इतनी सामर्थ्य तो यमराज में भी नहीं।
जगरानी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उस युवक की ओर देखा जिसने आज उन्हें माँ कहा था। उनके हाथ से कूँची छूट गयी। उन्होंने काँपते हुए पूछा- तो क्या....
युवक ने रोते हुए कहा- चन्दू भइया अमर हो गए माँ! प्रयाग में जब पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया तो वे देर तक अकेले ही लड़ते रहे। जब अंत में उनके पास एक ही गोली बची तो उन्होंने स्वयं को गोली मार ली, अंग्रेजों की गोली तो उन्हें छू भी नहीं पायी...
जगरानी ने अपना बेटा खो दिया था। वे जैसे जड़ हो गयी थीं। आँखों से धार बहने लगी थी। बढ़ती हुई भीड़ चुपचाप उनका मुह निहार रही थी। कुछ पल की चुप्पी के बाद उनके स्वर फूटे- तो अज्जू की टेक रह गयी!
युवक ने उत्साहित हो कर कहा- चन्दू भइया के मरने के आधे घण्टे बाद तक कोई सिपाही का उनके पास जाने का साहस न कर सका माँ!
जगरानी कराह उठीं।
युवक ने उन्हें ढाढ़स देने के लिए कहा- लोग कह रहे हैं कि प्रयाग के पार्क में इतनी भीड़ थी जिनती आज तक कभी नहीं हुई होगी।
पूरा देश 'चंद्रशेखर आजाद अमर रहें' के नारे लगा रहा है माँ!
जगरानी भूमि पर पसर गयी थीं। दूर स्तब्ध से खड़े लोग कुछ क्षण बाद उनके निकट आने लगे। महिलाओं ने रोती माँ को ढाढ़स देने का प्रयास किया। अचानक रोती जगरानी के मुह पर एक अजीब मुस्कान फैल उठी, उन्होंने अजीब से गर्व के साथ कहा- ऐसी टेक तो भीष्म ने भी न निभाई थी...
भीड़ जैसे उत्साह से उबल पड़ी थी। किसी ने कहा- हमारा चन्दू राजा था काकी! ऐसी मृत्यु कहाँ किसी को मिलती है... वह विश्व के सभी बलिदानियों का सिरमौर बन गया है...
जगरानी ने उसी अजीब से स्वर में कहा- मैं जीवन भर सोचती रही कि मुझ दरिद्र का नाम 'जगरानी' क्यों है, आज अज्जू सच में मुझे जगरानी बना कर चला गया।
कुछ पल बाद उन्होंने पूछा- किसी ने चन्दू का शव देखा?
उत्तर मिला- नहीं! अज्जू भइया की देह पुलिस उठा ले गयी। पर देखने वाले बता रहे थे उनके मुख पर वही सदैव सी मुस्कान फैली हुई थी। लगता था जैसे अभी मूछ उमेठ कर मुस्कुरा रहे हों...
बूढ़ी फफक पड़ी- "मुस्कुराएगा क्यों नहीं? जो चाहता था वह तो कर ही लिया..."
"पर माँ! पुलिस हमें चन्दू भइया का शव नहीं देगी, लोग जुलूस निकाल रहे हैं पर पुलिस नहीं मानेगी। ईश्वर ने हमें अंतिम बार देखने भी नहीं दिया..."
जगरानी में जाने कहाँ का बल, कहाँ का सन्तोष आ गया था। बोलीं- अरे जाने दे! वो हमारा था कहाँ? उसकी माँ तो यह धरती थी, उसने तो देखा न उसे अंतिम बार! उसी की गोद में ही न उसने अंतिम सांस ली! भले मेरा बेटा छिन गया, पर उसे तो उसकी माँ मिल गयी... जाने दे!"
भीड़ खड़ी थी पर सन्नाटा पसरा था। कुछ लोगों ने उत्साह में नारे लगाए। माँ निःशब्द पड़ी थी। किसी ने एक लंबी आह भर कर कहा- आजाद जैसे बीर ऐसी ही माँओं की कोख से जन्मते हैं। एक आजाद बनाने के लिए जाने कितनी बार ईश्वर सर पटकता होगा।
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