Friday, 24 October 2014
Diwali wishes to Indian Army soldiers by MAKE A DIFFERENCE group on occasion of Diwali Festival.
Good wishes of Diwali to Gorkha Btaliyan |
Good wishes to Sikh Regiment |
Few moments with Real Heroes |
DIFFERENCE group on occasion of Diwali Festival.
Location: Village Sikhera,Mawana Road Near Meerut Cant.
program: Our Group "Make A Difference" wishes Happy Diwali With Sweets
and Gift to army Group Leaders in morning for all soldiers.
participaters: Gaurav Bhardwaj, Jony Kumar, Anand and Saurabh.
special participation of Retd.Subedar Mr. Bheem Singh ji.
जगमग आतिश बाजियां , रौशन है आकाश ! ....
और सितारे ढो रहे , अंधियारे की लाश !! .....
दिए जला दिल से मगर , दिल न जला तूं यार ! ...
ख़ुशी ख़ुशी दिल से मना , दीपों का त्यौहार !! ...
ज्यूँ ही हवा चराग़ के , आयी ज़रा समीप ! ....
फ़ैल गयी फिर रौशनी , जले दीप से दीप !!....
बिखरे पत्ते ताश के , भरे हुए हैं जाम ! ....
दीवाली की आड़ में , कैसे कैसे काम !! ...
घर आवे जो लक्ष्मी , सेठ तुम्हारे आज ! ...
उससे भी तुम पूछ लो , कितना दोगी ब्याज !! ...
दीवाली के रोज़ भी , आया नहीं सुहाग ! ...
अश्कों से ही रात भर ,जलते रहे चराग़ !! ....
Wednesday, 22 October 2014
'एक वो भी दिवाली थी… एक ये भी दिवाली है'... Why??
कार्तिक मास की अमावस क्यों खास होती है यह बताने की आवश्यकता ही नहीं..रोशनी के त्यौहार दिवाली से कौन अनजान होगा ?
कुछ
सालों पहले तक दिवाली की तैयारियों में जो उत्साह उमंग दिखाई दिया करता था
, क्या वह आज भी कायम है?अगर नहीं तो इसके कई कारण हो सकते हैं.इन संभावित
कारणों
को हम आप बहुत कुछ जानते भी हैं..दोहराने से
क्या लाभ..?मुख्य कारण तो मंहगाई ही है लेकिन बढ़ते आधुनिकीकरण का प्रभाव
रीती रिवाजों के साथ साथ त्योहारों पर भी पड़ रहा है.बीते कल में और आज में
बहुत परिवर्तन आ गया है.आने वाले कल में और कितना परिवर्तन आएगा या कल हम
रिवर्स में भी जा सकते हैं?
याद है ….हर साल मिट्टी के १००-१५० नए दिए लाए जाते ,पानी में उन्हें डुबा कर रखना फिर सुखाना ,रूई की बत्तियाँ बनाना,आस पड़ोस में देने के लिए दिवाली की मिठाई की थाल के लिए नए थाल पोश बनाना,रंगोली के नए डिजाईन तलाशना ,कंदीलें बनाना[अब कंदीलें गायब हैं] ,उन दिनों रेडीमेड कपड़ों का कम चलन था सो महीने दो महीने पहले ही नए कपडे ले कर दर्जी से सिलवाना.. आदि आदि…
हफ्ते भर पहले ही बच्चे हथोड़ा लिए बिंदी वाले पटाखे बजाते नज़र आते..रोकेट चलाने के लिए खाली बोतलें ढूंढ कर रखी जातीं.पटाखों में भी बहुत बदलाव आया है.घर की पुताई साल में दीवाली पर ही होती थी तो स्कूल से १-२ दिन की छुट्टी इसी बहाने से लिए ली जाती..अब डिस्टेम्पर आदि तरह तरह के आधुनिक एडवांस रंगों ने हर साल की पुताई पर कंट्रोल किया है.मिठाईयाँ नमकीन की कहें तो घर में ही सभी मिष्ठान बनते थे ..लड्डू -मट्ठी तो महीना भर के लिए बन जाते थे और मम्मी को मिठाई पर ताला भी लगाना पड़ता था [ताला लगाने की वजह मैं “मीठे की चोर” हुआ करती थी.अब केलोरी फ्री /शुगर फ्री मिठाई का फैशन है .सच कहूँ तो उन दिनों ‘डिज़ाईनर मिठाईयों/उपहारों ’ का चलन भी इतना नहीं था,घर की बनी मिठाई ली दी जाती थी.
सिर्फ दिवाली ही नहीं दिवाली के साथ शुरू हुई
त्योहारों की श्रृंखला पास पड़ोस /सम्बन्धी/मित्रों के साथ मिलकर धूम धाम से
मनाई जाती थी.
अब हम सिमट रहे हैं अपने अपने दायरों में और दिवाली एस एम् एस /ईग्रीटिंग/मिठाई /उपहारों का औपचारिक आदान प्रदान /औपचारिक दिवाली मिलन समारोह जैसा १-२ घंटे का कार्यक्रम कर अपने दायित्व की इति श्री कर लेते हैं.मैं ने जो कुछ लिखा ज़रुरी नहीं उस से सभी सहमत हों लेकिन लगता ऐसा ही है हम में से अधिकतर अपने तीज त्यौहार आज औपचारिकतावश मना रहे हैं.त्योहारों के आने का वो उत्साह /वो उमंग/ वो उल्लास जो १५-२० साल पहले हुआ करता था अब कहाँ देखने को मिलता है ?
Sunday, 19 October 2014
Friday, 17 October 2014
HAPPY DIWALI.....
FILE
|
राष्ट्र-लक्ष्मी की वंदना करते हुए
क्यों न मनाएं दीप पर्व
कुछ इस रूप में,
संस्कार की रंगोली सजे,
विश्वास के दीप जले,
आस्था की पूजा हो,
सद्भाव की सज्जा हो,
स्नेह की धानी हो,
प्रसन्नता के पटाखे,
प्रेम की फुलझड़ियां जलें,
आशाओं के अनार चलें,
ज्ञान का वंदनवार हो,
विनय से दहलीज सजे,
सौभाग्य के द्वार खुले,
उल्लास से आंगन खिले,
दान और दया के व्यंजन पकें,
मर्यादाओं की दीवारें चमकें,
प्रेरणा के चौक-मांडनें पूरें,
परंपरा का कलश धरें,
संकल्प का श्रीफल हो,
आशीर्वाद का मंत्रोच्चार,
मूल्यों का स्वस्तिक बने,
आदर्श का ओम,
सत्य का बने श्री
और प्रगति के पग,
और लाभ की जगह कर्तव्य,
विजयलक्ष्मी की स्थापना हो,
अभय गणेश की आराधना
और अजेय सरस्वती की अर्चना।
सृजन की सुंदर आरती हो,
क्यों न ऐसी शुभ क्रांति हो।
मनाएं, स्वर्णिम पर्व इस भाव रूप में,
अनुभाव रूप में।
धनतेरस की कहानी,Story of Dhanteras
भारत त्यौहारों का देश है।
विभिन्न त्यौहारों पर अलग-अलग पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. इसी प्रकार
धनतेरस पर भी यमराज की एक कथा बहुत प्रचलित है। कथा कुछ इस प्रकार है।
पुराने जमाने में एक राजा हुए थे राजा हिम। उनके यहां एक पुत्र हुआ, तो उसकी जन्म-कुंडली बनाई गई। ज्योतिषियों ने कहा कि राजकुमार अपनी शादी के चौथे दिन सांप के काटने से मर जाएगा। इस पर राजा चिंतित रहने लगे। जब राजकुमार की उम्र 16 साल की हुई, तो उसकी शादी एक सुंदर, सुशील और समझदार राजकुमारी से कर दी गई। राजकुमारी मां लक्ष्मी की बड़ी भक्त थीं। राजकुमारी को भी अपने पति पर आने वाली विपत्ति के विषय में पता चल गया।
राजकुमारी काफी दृढ़ इच्छाशक्ति वाली थीं। उसने चौथे दिन का इंतजार पूरी तैयारी के साथ किया। जिस रास्ते से सांप के आने की आशंका थी, वहां सोने-चांदी के सिक्के और हीरे-जवाहरात आदि बिछा दिए गए। पूरे घर को रोशनी से जगमगा दिया गया। कोई भी कोना खाली नहीं छोड़ा गया यानी सांप के आने के लिए कमरे में कोई रास्ता अंधेरा नहीं छोड़ा गया। इतना ही नहीं, राजकुमारी ने अपने पति को जगाए रखने के लिए उसे पहले कहानी सुनाई और फिर गीत गाने लगी।
इसी दौरान जब मृत्यु के देवता यमराज ने सांप का रूप धारण करके कमरे में प्रवेश करने की कोशिश की, तो रोशनी की वजह से उनकी आंखें चुंधिया गईं। इस कारण सांप दूसरा रास्ता खोजने लगा और रेंगते हुए उस जगह पहुंच गया, जहां सोने तथा चांदी के सिक्के रखे हुए थे। डसने का मौका न मिलता देख, विषधर भी वहीं कुंडली लगाकर बैठ गया और राजकुमारी के गाने सुनने लगा। इसी बीच सूर्य देव ने दस्तक दी, यानी सुबह हो गई। यम देवता वापस जा चुके थे। इस तरह राजकुमारी ने अपनी पति को मौत के पंजे में पहुंचने से पहले ही छुड़ा लिया। यह घटना जिस दिन घटी थी, वह धनतेरस का दिन था, इसलिए इस दिन को ‘यमदीपदान’ भी कहते हैं। भक्तजन इसी कारण धनतेरस की पूरी रात रोशनी करते हैं।
पुराने जमाने में एक राजा हुए थे राजा हिम। उनके यहां एक पुत्र हुआ, तो उसकी जन्म-कुंडली बनाई गई। ज्योतिषियों ने कहा कि राजकुमार अपनी शादी के चौथे दिन सांप के काटने से मर जाएगा। इस पर राजा चिंतित रहने लगे। जब राजकुमार की उम्र 16 साल की हुई, तो उसकी शादी एक सुंदर, सुशील और समझदार राजकुमारी से कर दी गई। राजकुमारी मां लक्ष्मी की बड़ी भक्त थीं। राजकुमारी को भी अपने पति पर आने वाली विपत्ति के विषय में पता चल गया।
राजकुमारी काफी दृढ़ इच्छाशक्ति वाली थीं। उसने चौथे दिन का इंतजार पूरी तैयारी के साथ किया। जिस रास्ते से सांप के आने की आशंका थी, वहां सोने-चांदी के सिक्के और हीरे-जवाहरात आदि बिछा दिए गए। पूरे घर को रोशनी से जगमगा दिया गया। कोई भी कोना खाली नहीं छोड़ा गया यानी सांप के आने के लिए कमरे में कोई रास्ता अंधेरा नहीं छोड़ा गया। इतना ही नहीं, राजकुमारी ने अपने पति को जगाए रखने के लिए उसे पहले कहानी सुनाई और फिर गीत गाने लगी।
इसी दौरान जब मृत्यु के देवता यमराज ने सांप का रूप धारण करके कमरे में प्रवेश करने की कोशिश की, तो रोशनी की वजह से उनकी आंखें चुंधिया गईं। इस कारण सांप दूसरा रास्ता खोजने लगा और रेंगते हुए उस जगह पहुंच गया, जहां सोने तथा चांदी के सिक्के रखे हुए थे। डसने का मौका न मिलता देख, विषधर भी वहीं कुंडली लगाकर बैठ गया और राजकुमारी के गाने सुनने लगा। इसी बीच सूर्य देव ने दस्तक दी, यानी सुबह हो गई। यम देवता वापस जा चुके थे। इस तरह राजकुमारी ने अपनी पति को मौत के पंजे में पहुंचने से पहले ही छुड़ा लिया। यह घटना जिस दिन घटी थी, वह धनतेरस का दिन था, इसलिए इस दिन को ‘यमदीपदान’ भी कहते हैं। भक्तजन इसी कारण धनतेरस की पूरी रात रोशनी करते हैं।
#Diwali, Diwali of India
This festive season, The Alternative asks you to look at Diwali for what
it is really meant to be about- spreading joy, love and laughter – and
not a wasteful, harmful and an inhumane festive revelry.
It would be the easiest thing in the world to believe that we Indians lack conscience. Otherwise how do we let children die in firecracker making facilities year after year and yet still burst crackers with such joy? While the government still decides on steps to make these factories safer, we can look at way to celebrate eco friendly Diwali.
1. Give: Your time and the money you would have spent on crackers. And it’s not as hard as it sounds. 16 year old Sriya from Chennai has an even better idea. “After the traditional cleaning at home, I always have stuff I know I won’t use again,” she says. “I take them to the various NGOs in the city who can use it for the children or old people they serve.” She is sick of hearing about children getting burnt or injured making crackers. She stopped bursting then when she was 10. Her mum gave an option. “We would spend about Rs 1000 on crackers,” she says. “When the children didn’t want them, I started donating this to charity. I feel we have finally understood the spirit of the festival.”
2. Go natural: Ruma Ghosh of Kolkata is an English teacher in a leading school in the city. Every Diwali her class makes the lamps that lights their house during the festival. “They have fun and learn useful skills,” she says. The last two Diwalis saw her invite her students to her house to eat sweets an
d make lamps. “That was 15 students less bursting crackers that day,” she says.
She also has a new project for her students this time. “Instead of crackers, we are going to plant trees,” she says. “The children will gather in the school and pay with the mud and water while planting the sapling instead of causing more pollution with crackers.”
3. Save animals: Hemlata (STD XI) of Chennai was sick last Diwali. As she lay in bed, missing the fun, her dog gave her company. “The noise from crackers scares him,” she says. “I could see how happy he was that I wasn’t out there doing things that he hates so much.” She is going cracker free this Diwali and also volunteering this Diwali at an animal shelter.
4. Cut out the noise: Kanak from Kolkatta has a good reason to go without crackers. “Diwali means holidays for every member of my beloved family. It’s a time to get together, share concerns and simply talk,” he says. “We rarely get the whole family together. When we do I want to hear is their voices, not get deafened by noisy crackers.” This Diwali cut out the noise.
5. Adding colour: “Crackers add noise, rangolis add colour,” believes Sudha Raghunathan. She bursts no crackers. Instead in the light of handmade earthen lamps she makes the biggest rangoli with the kids in her area.
6. Community celebrations: The Triparna housing Society in Kolkatta has come up with a way. They gather together and celebrate the festival as one community instead of individual celebrations and use smokeless environmentally friendly crackers made out of recycled paper. These crackers produce bright colors and little smoke when they burst. “They are more expensive than the conventional ones,” says Puja Secretary Rani Basu. “But since it’s a single celebration we all pay towards the costs and limit it to about three hours in the evening.”
It would be the easiest thing in the world to believe that we Indians lack conscience. Otherwise how do we let children die in firecracker making facilities year after year and yet still burst crackers with such joy? While the government still decides on steps to make these factories safer, we can look at way to celebrate eco friendly Diwali.
1. Give: Your time and the money you would have spent on crackers. And it’s not as hard as it sounds. 16 year old Sriya from Chennai has an even better idea. “After the traditional cleaning at home, I always have stuff I know I won’t use again,” she says. “I take them to the various NGOs in the city who can use it for the children or old people they serve.” She is sick of hearing about children getting burnt or injured making crackers. She stopped bursting then when she was 10. Her mum gave an option. “We would spend about Rs 1000 on crackers,” she says. “When the children didn’t want them, I started donating this to charity. I feel we have finally understood the spirit of the festival.”
2. Go natural: Ruma Ghosh of Kolkata is an English teacher in a leading school in the city. Every Diwali her class makes the lamps that lights their house during the festival. “They have fun and learn useful skills,” she says. The last two Diwalis saw her invite her students to her house to eat sweets an
d make lamps. “That was 15 students less bursting crackers that day,” she says.
She also has a new project for her students this time. “Instead of crackers, we are going to plant trees,” she says. “The children will gather in the school and pay with the mud and water while planting the sapling instead of causing more pollution with crackers.”
3. Save animals: Hemlata (STD XI) of Chennai was sick last Diwali. As she lay in bed, missing the fun, her dog gave her company. “The noise from crackers scares him,” she says. “I could see how happy he was that I wasn’t out there doing things that he hates so much.” She is going cracker free this Diwali and also volunteering this Diwali at an animal shelter.
4. Cut out the noise: Kanak from Kolkatta has a good reason to go without crackers. “Diwali means holidays for every member of my beloved family. It’s a time to get together, share concerns and simply talk,” he says. “We rarely get the whole family together. When we do I want to hear is their voices, not get deafened by noisy crackers.” This Diwali cut out the noise.
5. Adding colour: “Crackers add noise, rangolis add colour,” believes Sudha Raghunathan. She bursts no crackers. Instead in the light of handmade earthen lamps she makes the biggest rangoli with the kids in her area.
6. Community celebrations: The Triparna housing Society in Kolkatta has come up with a way. They gather together and celebrate the festival as one community instead of individual celebrations and use smokeless environmentally friendly crackers made out of recycled paper. These crackers produce bright colors and little smoke when they burst. “They are more expensive than the conventional ones,” says Puja Secretary Rani Basu. “But since it’s a single celebration we all pay towards the costs and limit it to about three hours in the evening.”
Hope is Rope...
रात का समय था, चारों तरफ सन्नाटा पसरा
हुआ था , नज़दीक ही एक कमरे में चार मोमबत्तियां जल रही थीं। एकांत पा कर आज
वे एक दुसरे से दिल की बात कर रही थीं।
पहली
मोमबत्ती बोली, ” मैं शांति हूँ , पर मुझे लगता है अब इस दुनिया को मेरी
ज़रुरत नहीं है , हर तरफ आपाधापी और लूट-मार मची हुई है, मैं यहाँ अब और
नहीं रह सकती। …” और ऐसा कहते हुए , कुछ देर में वो मोमबत्ती बुझ गयी।
दूसरी मोमबत्ती बोली , ” मैं विश्वास हूँ ,
और मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच मेरी भी यहाँ कोई ज़रुरत नहीं है , मैं
भी यहाँ से जा रही हूँ …” , और दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।
तीसरी मोमबत्ती भी दुखी होते हुए बोली , ”
मैं प्रेम हूँ, मेरे पास जलते रहने की ताकत है, पर आज हर कोई इतना व्यस्त
है कि मेरे लिए किसी के पास वक्त ही नहीं, दूसरों से तो दूर लोग अपनों से
भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं ,मैं ये सब और नहीं सह सकती मैं भी इस
दुनिया से जा रही हूँ….” और ऐसा कहते हुए तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।
वो अभी बुझी ही थी कि एक मासूम बच्चा उस कमरे में दाखिल हुआ।
मोमबत्तियों को बुझे देख वह घबरा गया , उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे और वह रुंआसा होते हुए बोला ,
“अरे , तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रही , तुम्हे तो अंत तक जलना है ! तुम इस तरह बीच में हमें कैसे छोड़ के जा सकती हो ?”
“अरे , तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रही , तुम्हे तो अंत तक जलना है ! तुम इस तरह बीच में हमें कैसे छोड़ के जा सकती हो ?”
तभी चौथी मोमबत्ती बोली , ” प्यारे बच्चे
घबराओ नहीं, मैं आशा हूँ और जब तक मैं जल रही हूँ हम बाकी मोमबत्तियों को
फिर से जला सकते हैं। “
यह सुन बच्चे की आँखें चमक उठीं, और उसने आशा के बल पे शांति, विश्वास, और प्रेम को फिर से प्रकाशित कर दिया।
मित्रों , जब सबकुछ बुरा होते दिखे ,चारों
तरफ अन्धकार ही अन्धकार नज़र आये , अपने भी पराये लगने लगें तो भी उम्मीद
मत छोड़िये….आशा मत छोड़िये , क्योंकि इसमें इतनी शक्ति है कि ये हर खोई हुई
चीज आपको वापस दिल सकती है। अपनी आशा की मोमबत्ती को जलाये रखिये ,बस अगर
ये जलती रहेगी तो आप किसी भी और मोमबत्ती को प्रकाशित कर सकते हैं।
If you have Hope,means you have everything
रात का समय था, चारों तरफ सन्नाटा पसरा
हुआ था , नज़दीक ही एक कमरे में चार मोमबत्तियां जल रही थीं। एकांत पा कर आज
वे एक दुसरे से दिल की बात कर रही थीं।
पहली
मोमबत्ती बोली, ” मैं शांति हूँ , पर मुझे लगता है अब इस दुनिया को मेरी
ज़रुरत नहीं है , हर तरफ आपाधापी और लूट-मार मची हुई है, मैं यहाँ अब और
नहीं रह सकती। …” और ऐसा कहते हुए , कुछ देर में वो मोमबत्ती बुझ गयी।
दूसरी मोमबत्ती बोली , ” मैं विश्वास हूँ ,
और मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच मेरी भी यहाँ कोई ज़रुरत नहीं है , मैं
भी यहाँ से जा रही हूँ …” , और दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।
तीसरी मोमबत्ती भी दुखी होते हुए बोली , ”
मैं प्रेम हूँ, मेरे पास जलते रहने की ताकत है, पर आज हर कोई इतना व्यस्त
है कि मेरे लिए किसी के पास वक्त ही नहीं, दूसरों से तो दूर लोग अपनों से
भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं ,मैं ये सब और नहीं सह सकती मैं भी इस
दुनिया से जा रही हूँ….” और ऐसा कहते हुए तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।
वो अभी बुझी ही थी कि एक मासूम बच्चा उस कमरे में दाखिल हुआ।
मोमबत्तियों को बुझे देख वह घबरा गया , उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे और वह रुंआसा होते हुए बोला ,
“अरे , तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रही , तुम्हे तो अंत तक जलना है ! तुम इस तरह बीच में हमें कैसे छोड़ के जा सकती हो ?”
“अरे , तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रही , तुम्हे तो अंत तक जलना है ! तुम इस तरह बीच में हमें कैसे छोड़ के जा सकती हो ?”
तभी चौथी मोमबत्ती बोली , ” प्यारे बच्चे
घबराओ नहीं, मैं आशा हूँ और जब तक मैं जल रही हूँ हम बाकी मोमबत्तियों को
फिर से जला सकते हैं। “
यह सुन बच्चे की आँखें चमक उठीं, और उसने आशा के बल पे शांति, विश्वास, और प्रेम को फिर से प्रकाशित कर दिया।
मित्रों , जब सबकुछ बुरा होते दिखे ,चारों
तरफ अन्धकार ही अन्धकार नज़र आये , अपने भी पराये लगने लगें तो भी उम्मीद
मत छोड़िये….आशा मत छोड़िये , क्योंकि इसमें इतनी शक्ति है कि ये हर खोई हुई
चीज आपको वापस दिल सकती है। अपनी आशा की मोमबत्ती को जलाये रखिये ,बस अगर
ये जलती रहेगी तो आप किसी भी और मोमबत्ती को प्रकाशित कर सकते हैं।
Tuesday, 7 October 2014
स्वामी विवेकानंद ... A light for youth.. My Ideal hero.
उन्नीसवीं शताब्दी में अपना सारा जीवन दुःखी, कमजोर और असहाय लोगों की सेवा में अर्पित करने वाले स्वामी विवेकानंद सच्चे अर्थों में युगपुरूष थे।
अपनी ओजस्वी वाणी से उन्होने अनेक लोगों को मानव सेवा के लिए जागरूक किया। स्वामी विवेकानंद आधुनिकता के इस दौर में आज भी लाखों युवाओं के आदर्श हैं। स्मरण शक्ति के धनि नरेन्द्रनाथ के मन में अकसर ये प्रश्न उठता था कि जब सभी धर्मों का सार मानवता को श्रेष्ठ मानता है तो विश्व में ये विषमता क्यों एवं क्या किसी ने ईश्वर को देखा है ? इस प्रकार के प्रश्न नरेन्द्रनाथ को अकसर परेशान करते थे, तभी अचानक एक दिन पड़ोसी के घर नरेन्द्रनाथ की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई।
18 फरवरी 1836 को बंगाल प्रांत में रामकृष्ण का जन्म हुआ था। आपके बचपन का नाम गदाधर था। मानवीय मुल्यों के पोषक संत रामकृष्ण परमहंस कोलकता के निकट दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे। अपनी कठोर साधना और भक्ति के ज्ञान से इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि संसार के सभी धर्म सच्चे हैं उनमें कोई भिन्नता नहीं है। वे मोह-माया से विरक्त हिन्दु संत थे फिर भी सभी धर्मों की समानता का उपदेश देते थे। रामकृष्ण परमहंस के साथ भेंट के दौरान नरेन्द्रनाथ सुस्वर में एक गान गाये, जिसे सुनकर रामकृष्ण मंत्रमुग्ध हो गये। उन्होने नरेन्द्रनाथ को दक्षिणेश्वर आने को कहा। नरेन्द्रनाथ भी उनकी बातों से बहुत प्रभावित हुए थे अतः वे स्वयं को दक्षिणेश्वर जाने से रोक न सके। नरेन्द्रनाथ स्वामी विवेकानंद जी का पारिवारिक नाम था। सन्यास के बाद वो स्वामी विवेकानंद के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुए।
जब नरेन्द्रनाथ दक्षिणेश्वर गये तो बातचीत के दौरान ही उन्होने रामकृष्ण जी से प्रश्न करके पूछा कि, क्या ईश्वर को देखा जा सकता है?
“रामकृष्ण जी ने उत्तर दिया कि, क्यों नहीं उन्हे भी वैसे ही देखा जा सकता है जैसे मैं तुम्हे देख रहा हुँ। परन्तु इस लोक में ऐसा करना कौन चाहता है? स्त्री, पुत्र के लिए लोग घङों आँसू बहाते हैं, धन-दौलत के लिए रोज रोते हैं किन्तु भगवान की प्राप्ति न होने पर कितने लोग रोते हैं ! “
रामकृष्ण के इस उत्तर से नरेन्द्रनाथ बहुत प्रभावित हुए और अकसर ही दक्षिणेश्वर जाने लगे। मन ही मन में विवेकानंद जी ने स्वामी रामकृष्ण को अपना गुरु मान लिया था। विवेकानंद अपने भावी गुरु रामकृष्ण परमहंस जी से अनेक बातों में पृथक थे, फिर भी उनकी बातों से विवेकानंद जी की जिज्ञासा संतुष्ट होती थी। पौरुष के धनी विवेकानंद जी घुङसवारी, कुश्ती, तैराकी आदि में दक्ष थे तथा उनका शिक्षा ज्ञान विश्वविद्यालय स्तर का था। वहीं रामकृष्ण परमहंस जी सात्विक प्रवृत्ति के थे एवं उन्होने भक्ति तथा समाधि से सिद्धि प्राप्त की थी। वे आस्थावान संत थे। जबकि नरेन्द्रनाथ के लिए आस्था अंतिम शब्द नहीं था। वे प्रत्येक तथ्य को तर्क की कसौटी पर कसना आवश्यक मानते थे। रामकृष्ण केवल भारतीय मनिषीयों से ही प्रभावित थे, वहीं विवेकानंद पाश्चात्य बौद्धिकता से भी प्रभावित थे। इतनी विविधता के बावजूद विवेकानंद पर रामकृष्ण की बातों का असर किसी जादू से कम न था। नरेन्द्रनाथ लगातार रामकृष्ण जी की और आकृष्ट होते गये। उनको आभास होने लगा था कि उनके अंदर कुछ अद्भुत घटित हो रहा है।
एक बार वार्तालाप के दौरान रामकृष्ण का हाँथ नरेन्द्रनाथ से स्पर्श हो गया, नरेन्द्रनाथ तत्काल बेहोश हो गये। उन्हे लगा कि वे किसी अन्य लोक में चले गये। विवेकानंद जी ने अपने उस दिन के अनुभव का वर्णन करते हुए कहा कि, “उस समय मेरी आँखें खुली हुई थी, मैने देखा था कि दीवारों के साथ कमरे का सभी सामान तेजी से घुमता हुआ कहीं विलीन हो रहा है। मुझे लगा कि सारे ब्रह्माण्ड के साथ मैं भी कहीं विलीन हो रहा हूँ। मैं भय से काँप उठा। जब मेरी चेतना लौटी तो मैने देखा कि, प्रखर आभा मंडल का तेज लिए ठाकुर रामदेव मेरी पीठ पर हाँथ फेर रहे हैं। “
इस घटना का नरेन्द्रनाथ पर बहुत गहरा असर हुआ। उन्होने सोचा कि जिस शक्ति के आगे मेरी जैसी दृणइच्छा शक्ति वाला बलिष्ठ युवक भी बच्चा बन गया, वह व्यक्ति निश्चय ही अलौकिक शक्ति से संपन्न है। रामकृष्ण परम्हंस के प्रति नरेन्द्रनाथ की श्रद्धा और अधिक आंतरिक हो गई। लगभग पाँच वर्ष की घनिष्ठता के बाद नरेन्द्रनाथ औपचारिक रूप से स्वामी रामकृष्ण परमहंस के विधिवत शिष्य बन गये और योग्य गुरु को योग्य उत्तराधिकारी मिल गया। उन्होने विवेकानंद को ध्यान समाधि में श्रेष्ठ बना दिया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के समाधि लेने के पश्चात नरेन्द्रनाथ ने सन्यास ले लिया। नरेन्द्रनाथ देश सेवा का व्रत ले सम्पूर्ण विश्व में स्वामी विवेकानंद के नाम से वंदनीय हो गये। स्वामी विवेकानंद जी का प्रमुख प्रयोजन था रामकृष्ण मिशन के आदर्शों को जन-जन की आवाज बनाना। मानवता के प्रति स्वामी विवेकानंद की अटूट आस्था थी, अतः उन्होने जाति-पाती, ऊँच-नीच, छुआ-छूत आदि का विरोध किया। स्वामी विवेकानंद जी में राष्ट्र प्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ था। उनका प्रयास था कि प्रत्येक भारतवासी में राष्ट्र प्रेम का भाव समाहित हो। स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरु रामकृष्ण के आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए एवं दलितों की सेवा हेतु रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। आज भी ये संस्था लोक सेवा के कार्य में लगी हुई है। जिसका मूल मंत्र है, मानव सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है।
कैसे डालें सुबह जल्दी उठने की आदत?
हममें से ज्यादातर लोगों ने कभी ना कभी ये कोशिश ज़रूर की होगी कि रोज़ सुबह जल्दी उठा जाये. हो सकता है कि आपमें से कुछ लोग कामयाब भी हुए हों, पर अगर majority की बात की जाये तो वो ऐसी आदत डालने में सफल नहीं हो पाते. लेकिन आज जो article मैं आपसे share कर रहा हूँ इस पढने के बाद आपकी सफलता की probability निश्चित रूप से बढ़ जाएगी. यह article इस विषय पर दुनिया में सबसे ज्यादा पढ़े गए लेखों में से एक का Hindi Translation है. इसे Mr. Steve Pavlina ने लिखा है . इसका title है “How to become an early riser.“. ये बताना चाहूँगा कि इन्ही के द्वारा लिखे गए लेख “20 मिनट में जानें अपने जीवन का उद्देश्य ” का Hindi version इस ब्लॉग पर सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले लेखों में से एक है.
तो आइये जानें कि हम कैसे डाल सकते हैं सुबह जल्दी उठने की आदत.
कैसे डालें सुबह जल्दी उठने की आदत?
It is well to be up before daybreak, for such habits contribute to health, wealth, and wisdom.
-Aristotle
-Aristotle
सूर्योदय होने से पहले उठाना अच्छा होता है , ऐसी आदत आपको स्वस्थ , समृद्ध और बुद्धिमान बनती है .
सुबह उठने वाले लोग पैदाईशी ऐसे होते हैं या ऐसा बना जा सकता है ? मेरे case में तो निश्चित रूप से मैं ऐसा बना हूँ . जब मैं बीस एक साल का था तब शायद ही कभी midnight से पहले बिस्तर पे जाता था . और मैं लगभग हमेशा ही देर से सोता था. और अक्सर मेरी गतिविधियाँ दोपहर से शुरू होती थीं .
पर कुछ समय बाद मैं सुबह उठने और successful होने के बीच के गहरे सम्बन्ध को ignore नहीं कर पाया , अपनी life में भी . उन गिने – चुने अवसरों पर जब भी मैं जल्दी उठा हूँ तो मैंने पाया है कि मेरी productivity लगभग हमेशा ही ज्यादा रही है , सिर्फ सुबह के वक़्त ही नहीं बल्कि पूरे दिन . और मुझे खुद अच्छा होने का एहसास भी हुआ है . तो एक proactive goal-achiever होने के नाते मैंने सुबह उठने की आदत डालने का फैसला किया . मैंने अपनी alarm clock 5 am पर सेट कर दी …
— और अगली सुबह मैं दोपहर से just पहले उठा .
ह्म्म्म…………
मैंने फिर कई बार कोशिश की , पर कुछ फायदा नहीं हुआ .मुझे लगा कि शायद मैं सुबह उठने वाली gene के बिना ही पैदा हुआ हूँ . जब भी मेरा alarm बजता तो मेरे मन में पहला ख्याल यह आता कि मैं उस शोर को बंद करूँ और सोने चला जून . कई सालों तक मैं ऐसा ही करता रहा , पर एक दिन मेरे हाथ एक sleep research लगी जिससे मैंने जाना कि मैं इस problem को गलत तरीके से solve कर रहा था . और जब मैंने ये ideas apply कीं तो मैं निरंतर सुबह उठने में कामयाब होने लगा .
गलत strategy के साथ सुबह उठने की आदत डालना मुश्किल है पर सही strategy के साथ ऐसा करना अपेक्षाकृत आसान है .
सबसे common गलत strategy है कि आप यह सोचते हैं कि यदि सुबह जल्दी उठाना है तो बिस्तर पर जल्दी जाना सही रहेगा . तो आप देखते हैं कि आप कितने घंटे की नीद लेते हैं , और फिर सभी चीजों को कुछ गहनते पहले खिसका देते हैं . यदि आप अभी midnight से सुबह 8 बजे तक सोते हैं तो अब आप decide करते हैं कि 10pm पर सोने जायेंगे और 6am पर उठेंगे . सुनने में तर्कसंगत लगता है पर ज्यदातर ये तरीका काम नहीं करता .
ऐसा लगता है कि sleep patterns को ले के दो विचारधाराएं हैं . एक है कि आप हर रोज़ एक ही वक़्त पर सोइए और उठिए . ये ऐसा है जैसे कि दोनों तरफ alarm clock लगी हो —आप हर रात उतने ही घंटे सोने का प्रयास करते हैं . आधुनिक समाज में जीने के लिए यह व्यवहारिक लगता है . हमें अपनी योजना का सही अनुमान होना चाहिए . और हमें पर्याप्त आराम भी चाहिए .
दूसरी विचारधारा कहती है कि आप अपने शरीर की ज़रुरत को सुनिए और जब आप थक जायें तो सोने चले जाइये और तब उठिए जब naturally आपकी नीद टूटे . इस approach की जड़ biology में है . हमारे शरीर को पता होना चाहिए कि हमें कितना rest चाहिए , इसलिए हमें उसे सुनना चाहिए .
Trial and error से मुझे पता चला कि दोनों ही तरीके पूरी तरह से उचित sleep patterns नहीं देते . अगर आप productivity की चिंता करते हैं तो दोनों ही तरीके गलत हैं . ये हैं उसके कारण :
यदि आप निश्चित समय पे सोते हैं तो कभी -कभी आप तब सोने चले जायेंगे जब आपको बहुत नीद ना आ रही हो . यदि आपको सोने में 5 मिनट से ज्यादा लग रहे हों तो इसका मतलब है कि आपको अभी ठीक से नीद नहीं आ रही है . आप बिस्तर पर लेटे -लेटे अपना समय बर्वाद कर रहे हैं ; सो नहीं रहे हैं . एक और problem ये है कि आप सोचते हैं कि आपको हर रोज़ उठने ही घंटे की नीद चाहिए , जो कि गलत है . आपको हर दिन एक बराबर नीद की ज़रुरत नहीं होती .
यदि आप उतना सोते हैं जितना की आपकी body आपसे कहती है तो शायद आपको जितना सोना चाहिए उससे ज्यादा सोएंगे —कई cases में कहीं ज्यादा , हर हफ्ते 10-15 घंटे ज्यदा ( एक पूरे waking-day के बराबर ) ज्यादातर लोग जो ऐसे सोते हैं वो हर दिन 8+ hrs सोते हैं , जो आमतौर पर बहुत ज्यादा है . और यदि आप रोज़ अलग -अलग समय पर उठ रहे हैं तो आप सुबह की planning सही से नहीं कर पाएंगे . और चूँकि कभी -कभार हमारी natural rhythm घडी से मैच नहीं करती तो आप पायंगे कि आपका सोने का समय आगे बढ़ता जा रहा है .
मेरे लिए दोनों approaches को combine करना कारगर साबित हुआ . ये बहुत आसान है , और बहुत से लोग जो सुबह जल्दी उठते हैं , वो बिना जाने ही ऐसा करते हैं , पर मेरे लिए तो यह एक mental-breakthrough था . Solution ये था की बिस्तर पर तब जाओ जब नीद आ रही हो ( तभी जब नीद आ रही हो ) और एक निश्चित समय पर उठो ( हफ्ते के सातों दिन ). इसलिए मैं हर रोज़ एक ही समय पर उठता हूँ ( in my case 5 am) पर मैं हर रोज़ अलग -अलग समय पर सोने जाता हूँ .
मैं बिस्तर पर तब जाता हूँ जब मुझे बहुत तेज नीद आ रही हो . मेरा sleepiness test ये है कि यदि मैं कोई किताब बिना ऊँघे एक -दो पन्ने नहीं पढ़ पाता हूँ तो इसका मतलब है कि मै बिस्तर पर जाने के लिए तैयार हूँ .ज्यादातर मैं बिस्तर पे जाने के 3 मिनट के अन्दर सो जाता हूँ . मैं आराम से लेटता हूँ और मुझे तुरंत ही नीद आ जाति है . कभी कभार मैं 9:30 पे सोने चला जाता हूँ और कई बार midnight तक जगा रहता हूँ . अधिकतर मैं 10 – 11 pm के बीच सोने चला जाता हूँ .अगर मुझे नीद नहीं आ रही होती तो मैं तब तक जगा रहता हूँ जब तक मेरी आँखें बंद ना होने लगे . इस वक़्त पढना एक बहुत ही अच्छी activity है , क्योंकि यह जानना आसान होता है कि अभी और पढना चाहिए या अब सो जाना चाहिए .
जब हर दिन मेरा alarm बजता है तो पहले मैं उसे बंद करता हूँ , कुछ सेकंड्स तक stretch करता हूँ , और उठ कर बैठ जाता हूँ . मैं इसके बारे में सोचता नहीं . मैंने ये सीखा है कि मैं उठने में जितनी देर लगाऊंगा ,उतना अधिक chance है कि मैं फिर से सोने की कोशिश करूँगा .इसलिए एक बार alarm बंद हो जाने के बाद मैं अपने दिमाग में ये वार्तालाप नहीं होने देता कि और देर तक सोने के क्या फायदे हैं . यदि मैं सोना भी चाहता हूँ , तो भी मैं तुरंत उठ जाता हूँ .
इस approach को कुछ दिन तक use करने के बाद मैंने पाया कि मेरे sleep patterns एक natural rhythm में सेट हो गए हैं . अगर किसी रात मुझे बहुत कम नीद मिलती तो अगली रात अपने आप ही मुझे जल्दी नीद आ जाती और मैं ज्यदा सोता . और जब मुझमे खूब energy होती और मैं थका नहीं होता तो कम सोता . मेरी बॉडी ने ये समझ लिया कि कब मुझे सोने के लिए भेजना है क्योंकि उसे पता है कि मैं हमेशा उसी वक़्त पे उठूँगा और उसमे कोई समझौता नहीं किया जा सकता .
इसका एक असर ये हुआ कि मैं अब हर रात लगभग 90 मिनट कम सोता ,पर मुझे feel होता कि मैंने पहले से ज्यादा रेस्ट लिया है . मैं अब जितनी देर तक बिस्तर पर होता करीब उतने देर तक सो रहा होता .
मैंने पढ़ा है कि ज्यादातर अनिद्रा रोगी वो लोग होते हैं जो नीद आने से पहले ही बिस्तर पर चले जाते हैं . यदि आपको नीद ना आ रही हो और ऐसा लगता हो कि आपको जल्द ही नीद नहीं आ जाएगी , तो उठ जाइये और कुछ देर तक जगे रहिये . नीद को तब तक रोकिये जब तक आपकी body ऐसे hormones ना छोड़ने लगे जिससे आपको नीद ना आ जाये.अगर आप तभी bed पे जाएँ जब आपको नीद आ रही हो और एक निश्चित समय उठें तो आप insomnia का इलाज कर पाएंगे .पहली रात आप देर तक जागेंगे , पर बिस्तर पर जाते ही आपको नीद आ जाएगी . .पहले दिन आप थके हुए हो सकते हैं क्योंकि आप देर से सोये और बहुत जल्दी उठ गए , पर आप पूरे दिन काम करते रहेंगे और दूसरी रात जल्दी सोने चले जायेंगे .कुछ दिनों बाद आप एक ऐसे pattern में settle हो जायेंगे जिसमे आप लगभग एक ही समय बिस्तर पर जायंगे और तुरंत सो जायंगे .
Start your day with Yoga... योग दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धर्म है।
योग दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धर्म है। यदि योग अनुसार जीवन शैली ढाली जाए तो कुछ भी संभव हो सकता है। योग का एक अंग हस्तमुद्रा योग है जो योग की सबसे सरलतम विद्या है। यहां प्रस्तुत है शक्तिपान मुद्रा की विधि और लाभ।
इस मुद्रा का लाभ : इस मुद्रा को करने से जहां दिमागी संतुलन और शक्ति बढ़ती है, वहीं इसके निरंतर अभ्यास से भृकुटी में स्थित तीसरी आंख जाग्रत होने लगती है जिसे सिक्स्थ सेंस कहते हैं।
इसके अलावा इस मुद्रा को करने से क्रोध, सुस्ती और तनाव दूर हो जाता है साथ ही इससे याददाश्त भी बढ़ती है।
One More...
माण्डुकी मुद्रा बनाने की विधि : सबसे पहले मुंह को बंद कर दें। फिर जीभ को पूरे तालू के ऊपर दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे घुमाएं। इससे जीभ में लार उत्पन्न होगी। इसी को सुधा या अमृत कहते हैं। तालू से टपकती हुई लार बूंदों का जीभ से पान करें। इस क्रिया को ही माण्डुकी मुद्रा कहते हैं।
इसका लाभ- इसको करने से झुर्रियां पड़ना और बालों का सफेद होना रुक जाता है तथा नव यौवन की प्राप्ति होती है। इससे त्वचा चमकदार बनती है तथा इसके नियमित अभ्यास से वात-पित्त एवं कफ की समस्या दूर हो जाती है।
say bye to past... Don't think about mistakes you have made in past,just think to make a new Life without that mistake.
बुद्ध भगवान एक गाँव में उपदेश दे रहे थे. उन्होंने कहा कि “हर किसी को धरती माता की तरह सहनशील तथा क्षमाशील होना चाहिए. क्रोध ऐसी आग है जिसमें क्रोध करनेवाला दूसरोँ को जलाएगा तथा खुद भी जल जाएगा.”
सभा में सभी शान्ति से बुद्ध की वाणी सून रहे थे, लेकिन वहाँ स्वभाव से ही अतिक्रोधी एक ऐसा व्यक्ति भी बैठा हुआ था जिसे ये सारी बातें बेतुकी लग रही थी . वह कुछ देर ये सब सुनता रहा फिर अचानक ही आग- बबूला होकर बोलने लगा, “तुम पाखंडी हो. बड़ी-बड़ी बाते करना यही तुम्हारा काम. है। तुम लोगों को भ्रमित कर रहे हो. तुम्हारी ये बातें आज के समय में कोई मायने नहीं रखतीं “
ऐसे कई कटु वचनों सुनकर भी बुद्ध शांत रहे. अपनी बातोँ से ना तो वह दुखी हुए, ना ही कोई प्रतिक्रिया
की ; यह देखकर वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उसने बुद्ध के मुंह पर थूक कर वहाँ से चला गया।
की ; यह देखकर वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उसने बुद्ध के मुंह पर थूक कर वहाँ से चला गया।
अगले दिन जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ तो उसे अपने बुरे व्यवहार के कारण पछतावे की आग में जलने लगा और वह उन्हें ढूंढते हुए उसी स्थान पर पहुंचा , पर बुद्ध कहाँ मिलते वह तो अपने शिष्यों के साथ पास वाले एक अन्य गाँव निकल चुके थे .
व्यक्ति ने बुद्ध के बारे में लोगों से पुछा और ढूंढते- ढूंढते जहाँ बुद्ध प्रवचन दे रहे थे वहाँ पहुँच गया। उन्हें देखते ही वह उनके चरणो में गिर पड़ा और बोला , “मुझे क्षमा कीजिए प्रभु !”
बुद्ध ने पूछा : कौन हो भाई ? तुम्हे क्या हुआ है ? क्यों क्षमा मांग रहे हो ?”
उसने कहा : “क्या आप भूल गए। .. मै वही हूँ जिसने कल आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था. मै शर्मिन्दा हूँ. मै मेरे दुष्ट आचरण की क्षमायाचना करने आया हूँ.”
भगवान बुद्ध ने प्रेमपूर्वक कहा : “बीता हुआ कल तो मैं वहीँ छोड़कर आया गया और तुम अभी भी वहीँ अटके हुए हो. तुम्हे अपनी गलती का आभास हो गया , तुमने पश्चाताप कर लिया ; तुम निर्मल हो चुके हो ; अब तुम आज में प्रवेश करो. बुरी बाते तथा बुरी घटनाएँ याद करते रहने से वर्तमान और भविष्य दोनों बिगड़ते जाते है. बीते हुए कल के कारण आज को मत बिगाड़ो.”
उस व्यक्ति का सारा बोझ उतर गया. उसने भगवान बुद्ध के चरणों में पड़कर क्रोध त्यागका तथा क्षमाशीलता का संकल्प लिया; बुद्ध ने उसके मस्तिष्क पर आशीष का हाथ रखा. उस दिन से उसमें परिवर्तन आ गया, और उसके जीवन में सत्य, प्रेम व करुणा की धारा बहने लगी.
मित्रों , बहुत बार हम भूत में की गयी किसी गलती के बारे में सोच कर बार-बार दुखी होते और खुद को कोसते हैं। हमें ऐसा कभी नहीं करना चाहिए, गलती का बोध हो जाने पर हमे उसे कभी ना दोहराने का संकल्प लेना चाहिए और एक नयी ऊर्जा के साथ वर्तमान को सुदृढ़ बनाना चाहिए।
तुलसी वहाँ न जाइए, जन्मभूमि के ठाम | गुण-अवगुण चिह्ने नहीं, लेत पुरानो नाम ||....
एक बार गोस्वामी तुलसीदासजी काशी में विद्वानों के बीच भगवत चर्चा कर रहे थे। तभी दो व्यक्ति – जो तुलसीदासजी के गाँव से थे , वहाँ आये। ऐसे तो वे दोनों गंगास्नान करने आये थे। लेकिन सत्संग सभा तथा भगवद वार्तालाप हो रहा था
तो वे भी वहाँ बैठ गए। दोनो ने ने उन्हें पहचान लिया। वे आपस में बात करने लगे।
एक ने कहा – “अरे ! ए तो अपना रामबोला। हमारे साथ-साथ खेलता था। कैसी सब बाते कर रहा है, और लोग भी कितनी तन्मयता से उसकी वाणी सुन रहे है ! क्या चक्कर है ये सब ।”
दुसरे ने कहा – “हाँ भाई, मुझे तो वह पक्का बहुरूपी ठग लगता है। देखो तो कैसा ढोंग कर रहा है ! पहले तो वह ऐसा नहीं था। हमारे साथ खेलता था तब तो कैसा था और अब वेश बदल कर कैसा लग रहा है ! मुझे तो लगता है कि वह ढोंग कर रहा है।”
जब तुलसीदासजी ने उन्हें देखा तो वे दोनोके पास गए, उनसे खबर पूछी और बाते की।
दोनों में से एक ने कहाँ कि “अरे ! तूने तो कैसा वेष धारण कर लिया है ? तू सब को अँधेरे में रख सकता है, लेकिन हम तो तुम्हे अच्छी तरह से जानते है। तू सबको प्रभावित करने की कोशिष कर रहा है। लेकिन हम तो प्रभावित होनेवाले नहीं। हम जानते है कि तू ढोंग कर रहा है।”
तुलसीदासजी को मनोमन दोनो के अज्ञान पे दया आई। उनके मुखसे एक दोहा निकल गया –
तुलसी वहाँ न जाइए, जन्मभूमि के ठाम |
गुण-अवगुण चिह्ने नहीं, लेत पुरानो नाम ||
अर्थात साधू को अपने जन्मभूमि के गाँव नहीं जाना चाहिए। क्योंकि वहाँ के लोगों उन में प्रगट हुए गुणों को न देखकर पुराना नाम लेते रहेंगे। उनके ज्ञान-वैराग्य-भक्ति से किसी को कोई लाभ नहीं हो सकेगा।
निकट के लोग कई बार सही पहचान नहीं कर पाते । ‘अतिपरिचय अवज्ञा भवेत’ यानि अति परिचय के कारण नज़दीक के लोग सही लाभ नही ले पाता , जबकि दूर रहनेवाले आदर सम्मान कर के विद्वानों का लाभ ले पाता है।
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