होली : रंगों का त्योहार - About Holi in Hindi
होली का त्योहार रंगों का त्योहार है। इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग फेंकते हैं और गुलाल लगाते हैं।
होली का महत्त्व - होली के साथ एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। हिरण्यकश्यप एक राक्षस राजा था। उनके पुत्र प्रहलाद विष्णु भक्त निकला। बार बार बोलने पर भी प्रह्लाद विष्णु गन जाता थ। हिरण्य कश्यम क्रोधित हुआ एंड कई तरह उनको सजा दिय। लेकिन प्रह्लाद को भगवान की रक्षा से कुछ भी तकलीफ नहीं हुअ। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मार डालने के लिए एनपी बहन होलिका को नियुक्त किया था ! होलिका के पास एक ऐसी चादर थी , जिसे ओढ़ने पर व्यक्ति आग के प्रभाव से बच सकता था ! होलिका ने उस चादर को ओढ़कर प्रहलाद को गोद में ले लिया और अग्नि में कूद पड़ी ! वहाँ दैवीय चमत्कार हुआ ! चादर प्रह्लाद के ऊपर गिर पडी। होलिका आग में जलकर भस्म हो गई , परंतु विष्णुभक्त प्रहलाद का बाल भी बाँका न हुआ ! भक्त की विजय हुई और राक्षस की पराजय ! उस दिन सत्य ने असत्य पर विजय घोषित कर दी ! तब से लेकर आज तक होलिका-दहन की स्मृति में होली का मस्त पर्व मनाया जाता है !
होली मनाने की दूसरी प्रथा आज सारे समाज में प्रचलित है ! होली वाले दिन लोग प्रातः काल से दोपहर 12 बजे तक अपने हाथों में लाल , हरे , पीले रंगों का गुलाल हुए परस्पर प्रेमभाव से गले मिलते हैं ! इस दिन किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखा जाता ! किसी अपरिचित को भी गुलाल मलकर अपने ह्रदय के नजदीक लाया जाता है !
नृत्य-गान का वातावरण - होली वाले दिन गली -मुहल्लों में ढोल-मजीरे बजते सुनाई देते हैं ! इस दिन लोग लोग समूह-मंडलियों में मस्त होकर नाचते-गाते हैं ! दोपहर तक सर्वत्र मस्ती छाई रहती है ! कोई नीले-पीले वस्त्र लिए घूमता है , तो कोई जोकर की मुद्रा में मस्त है ! बच्चे पानी के रंगों में एक-दुसरे को नहलाने का आनंद लेते हैं ! गुब्बारों में रंगीन पानी भरकर लोगों पर गुब्बारें फेंकना भी बच्चों का प्रिय खेल हो जा रहा है ! बच्चे पिचकारियों से भी रंगों की वर्षा करते दिखाई देते हैं ! परिवारों में इस दिन लड़के-लडकियाँ , बच्चे-बूढ़े , तरुण-तरुनियाँ सभी मस्त होते हैं !
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होली को बदरंग न कर दे कृत्रिम रंग!
महाशिवरात्रि पर्व से ही शुरू होने वाली होली के महीने में चारों ओर फगुआ के गीत गूंजने लगते हैं और अबीर और गुलाल से वातावरण महका रहता है। वैसे तो भारत के सभी इलाकों में बाजार रंगों और गुलाल से सजे हैं, परंतु इनमें अधिकांश रंग कृत्रिम होते हैं जो त्वचा के लिए नुकसानदेह होते हैं।
बुजुर्गो का कहना है कि पहले एक खास पेड़ के छाल को पीस कर पाउडर बनाया जाता था और उसे गुलाल के रूप में प्रयोग किया जाता था, वहीं टेसू और पलाश के फूलों से शुद्घ रंग बनाए जाते थे। लेकिन, अब ये बातें केवल कहानियों में ही रह गई हैं। वे कहते हैं कि टेसू तो मात्र अब साहित्य की बात हो गई है।
वे बताते हैं कि टेसू मई-जून महीने में फूलता था जिसे सुखा कर रख दिया जाता था। होली के दिनों में उन्हीं फूलों को पानी में उबाल कर रंग बनाया जाता था। अब ना ऐसा गुलाल देखने को मिलता है और ना ही ऐसा रंग ही होली में इस्तेमाल किया जा रहा है।
जानकार बताते हैं कि आज के समय में जो गुलाल बाजार में उपलब्ध हैं उसमें एसिड, स्कारलेट और कई तरह के खतरनाक रसायनिक पदार्थ मिलाए जाते हैं।
चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ. रवि विक्रम सिंह कहते हैं कि होली के लिए बिकने वाले तमाम रंगों में ऐसे रंगों का इस्तेमाल किया जाता है जो कपड़ों के रंगने के काम आते हैं। इन रंगों का दुष्प्रभाव आंख, कान, त्वचा पर पड़ता है। वह कहते हैं कि आज होली के मौके पर बाजार में उपलब्ध अधिकांश रंग कृत्रिम होते हैं।
लोग बताते हैं कि पुराने समय में बिहार और झारखंड के लोग ना केवल टेसू के फूलों से बने रंग होली में इस्तेमाल करते थे बल्कि बिहार में नील की खेती सबसे अधिक होती थी और उससे नीला रंग तैयार होता था। इस कारण होली के मौके पर भी इन नीले रंगों का खूब इस्तेमाल किया जाता था। इस वर्ष बाजार में हर्बल गुलाल भी आ गए हैं, परंतु महंगा होने के कारण लोग इसे कम खरीद रहे हैं।
चिकित्सक कहते हैं कि कई बार चेहरे पर रंग लगने से जलन होने लगती है और इन रंगों को धोने के बाद गाल पर लाल-लाल छाले निकल जाते हैं और इनमें खुजली होने लगती है। वह कहते हैं कि इन रंगों से आंखों को क्षति पहुंचने का खतरा रहता है। चिकित्सक होली में कृत्रिम रंगों के व्यवहार से बचने की सलाह देते हैं।
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