*बुजुर्गो के लिए सुखी जीवन के 10 सूत्र*
जीवन के संकटों से सुरक्षित, तनाव मुक्त और सहज होने के लिए हम संकट से जूझ रहे हैं। परिवार के जन्म के समय परिवार में जन्म होता है, जो परिवार के जन्म के समय होता है। जन्म के बाद खराब होने के कारण गर्भ में परिवर्तन होने के कारण ये जन्म के बाद गर्भवती होने की स्थिति में बदल सकता है। ️ सामाजिक संकटों और दुखों के लिए विभूति हो सकती है। आज की संतान को माता-पिता ने न जाने आवास कर पाला-पोसा, बढ़े हुए, वर्ग, खुश्की रंग के साथ संबंधित उच्च गुणवत्ता वाले प्रकाश जैसे गुण उच्च श्रेणी के होते हैं। अस्वस्थ होने के कारण अस्वस्थ होने पर भी यह एक प्राकृतिक गुण है, जो विरासत में मिलने वाले पारिवारिक रिश्ते को प्रभावित करता है। ️️️️️️️️️️️️️ पुत्र-पिता, पुत्री, पुत्रवधु, संतान-संबंधी, संतान के संबंध में। इस तरह के मौसम मौसम, अशान्त व सा कर रहे हैं। स्वस्थ रहने वाले पूर्ण और पूर्ण पालन-पोषण वाले राज्य में रहते हैं। स्वस्थ रहने के लिए स्वस्थ रहने की स्थिति में रखने के लिए ये स्वस्थ्य रखने वाले होते हैं। स्पर्श करने के लिए आतुर तालिका। यह चिंत्य को ध्यान में रखते हुए झकझोर है और मानसिक रूप से प्रभावित होता है। प्रेग्नेंसी के समय प्रकाश संबंधित वातावरण में उड़ने वाले रंग के रोग जैसे रोग प्रतिरोधक क्षमता के तापमान में तापमान के अनुकूल होते हैं, इसलिए उनके माता-पिता के प्रति अज्ञाय, निमर्मता का तापमान विकसित होते हैं। अस्वस्थ होने के कारण अस्वस्थ होने पर भी यह एक प्राकृतिक गुण है, जो विरासत में मिलने वाले पारिवारिक रिश्ते को प्रभावित करता है। ️️️️️️️️️️️️️️️️️ पुत्र-पिता, पुत्री, पुत्रवधु, संतान-संबंधी, संतान के संबंध में। इस तरह के मौसम मौसम, अशान्त व सा कर रहे हैं। स्वस्थ रहने वाले पूर्ण और पूर्ण पालन-पोषण वाले राज्य में रहते हैं। स्वस्थ रहने के लिए स्वस्थ रहने की स्थिति में रखने के लिए ये स्वस्थ्य रखने वाले होते हैं। स्पर्श करने के लिए आतुर तालिका। यह चिंत्य को ध्यान में रखते हुए झकझोर है और दिमागी चमकते हैं। I अस्वस्थ होने के कारण अस्वस्थ होने पर भी यह एक प्राकृतिक गुण है, जो विरासत में मिलने वाले पारिवारिक रिश्ते को प्रभावित करता है। ️️️️️️️️️️️️️ पुत्र-पिता, पुत्री, पुत्रवधु, संतान-संबंधी, संतान के संबंध में। इस तरह के मौसम मौसम, अशान्त व सा कर रहे हैं। स्वस्थ रहने वाले पूर्ण और पूर्ण पालन-पोषण वाले राज्य में रहते हैं। स्वस्थ रहने के लिए स्वस्थ रहने की स्थिति में रखने के लिए ये स्वस्थ्य रखने वाले होते हैं। स्पर्श करने के लिए आतुर तालिका। यह चिंत्य को ध्यान में रखते हुए झकझोर है और मानसिक रूप से प्रभावित होता है। जि जि . स्पर्श करने के लिए आतुर तालिका। यह चिंत्य को ध्यान में रखते हुए झकझोर है और दिमागी चमकते हैं।
आज समाज में इसी प्रकार की व्याप्त विभिषिकाओं से प्रसूत अनुभवों के आधार पर गहन चिन्तन कर संतानों के व्यवहारजनित बुजुर्गों के लिये ये 10 सूत्र शायद उनके दुखों व अवसादों को औचित्यकरण करने में सहायक हो सके।
1. संतान जैसे ही अपने पैरों पर खड़ी हो जाती है तथा विवाहित हो जाए, उनमें उनके परिवार बोध को प्रखर करने के लिए उन्हें माता-पिता से अलग रहना ही ठीक है, जिससे वो अपना स्वछन्द जीवन जी सकें। कहाँ रहना चाहते हैं, क्या करना चाहते हैं, उसमें हस्तक्षेप न करे। बेटा और पुत्रवधु सास-ससुर की सही बातों को भी अपने जीवन में दखल समझते हैं। माता-पिता की उपस्थिति ही उनके लिए असह्य हो जाती है। जितना आपमें और बच्चों के परिवार में दूरी रहेगी उतना प्रेम बड़ेगा और पुत्रवधु के परिवार से भी रिश्ते सहज रहेंगे, क्योंकि शादी के बाद लड़का सुसराल के लोगों के प्रति सम्मान करने में कभी कमी नहीं रहने देगा परन्तु माता-पिता के प्रति सम्मान वा दायित्व गौण हो जाएगा।
2. अपने बेटे की पत्नी को अपनी बेटी समझने की कभी गलती ना करे। वह बेटे की पत्नी है उसको उसी रूप में देखें। अधिकांशतः लड़कियाँ ऐसे संस्कार व सोच लेकर नहीं आती कि उसकी सासू भी उसकी माँ ही है, इसलिए सास या ननद की कहीं कोई भी सलाह उन्हें क्षुब्ध कर देती है, डांट लगती है और वह बदले के भास से ग्रसित हो जाती है। जिसको जिन्दगीभर नहीं भूलेगी और घर की एकजुटता बिखर जायेगी और घर दुखदायी दीवार बन कर रह जायेगा।
3. आज की पुत्रवधु अधिकांशतः शिक्षित हैं, व्यवसाय में भी हैं या नहीं भी हैं। वे बेहद परिपक्व आदतों का विकसित रूप लेकर आती हैं। परिवार की संकल्पना उनकी सोच का हिस्सा नहीं है। वो स्वयं व अपने पति के साथ ही स्वतंत्र रूप में रहना चाहती हैं। किसी भी रूप में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप माता-पिता को भी नहीं करना चाहिए।
4. यदि आप बेटे के परिवार के साथ रह भी रहें है तो प्यार में इतना मत घुलजाइये की अपने बेटे-बहू के कपड़े धोना, खाना बनाना अथवा उनके बच्चों को पालना आपकी आदत बन जाए, जब तक कि उनसे विशेष निवेदन ना हो। उनकी समस्या को उन्हें ही सुलझाने दीजिए। ऐसा करना भारी भूल हो सकती है।
5. आपके बेटे-बहु में कभी-कभी टकरार होगी, उस समय अपना दखल कभी ना दें और कान-आँख बंद रखें, क्योंकि उनकी टकरार में वो दोनो कभी नहीं चाहेंगे कि घर का बुजुर्ग किसी की तरफ से बोले।
6. यह हमेशा ध्यान रखें कि आपके पोते-पोतियाँ आपके बेटे की संतान है। वे उनका पालन-पोषण जिस प्रकार भी करना चाहेंगे वो स्वयं की मर्जी से ही करेंगे। उसमें आपकी सहभागिता अथवा आपके किसी भी प्रकार के दवाब के प्रति सहिष्णु होंगे। उनके निर्णयों पर आप अपनी इच्छा थोपने का कभी भी प्रयास न करें।
7. आपकी पुत्रवधु आपका सम्मान करें यह आवश्यक नहीं है और ना ही आप इसकी अपेक्षा करें। किंचित इतनाभर हो सकता है कि यदि आपके पुत्र में पारिवारिक संस्कार कुछ शेष हैं तो वो अपनी पत्नी को परिवार के महत्व को समझा सकता है। माता-पिता के परिवार के निर्माण में योगदान को बता कर उसकी सोच में परिवर्तन ला सकता है, अन्यथा पुत्रवधु तो हमारी हो न सकी बेटा भी हमसे अलग हो जायेगा।
8. बुजुर्गो को अपने भविष्य में जीवन-यापन के लिए स्वयं योजना बनानी चाहिए और संतान पर कभी बोझ बनकर नहीं चाहिये और ना ही ये अपेक्षा रखनी चाहिये कि संतान वृद्धाअवस्था में आपका ध्यान रखेगी।
9. अपने शेष जीवन को सुखी करने के लिए इस पर ध्यान दें कि आपने जो कुछ भी अर्जित किया है उसको अपने पास ही रखने की चेष्टा करें, हांलाकि आपका पुत्र उस पर भी अपना अधिकार बतायेगा, जिसको सुरक्षित रखने के लिए आप अपने विवेक का प्रयोग करें, जिससे जीवन प्रसन्नता के साथ व्यतीत हो सके।
10. आपके पोते-पोतियां आपके बच्चे नहीं वह आपके लिए एक तोहफा है परन्तु यर्थात् को भी स्वीकार करें कि उन पर प्रथम अधिकार उनके माता-पिता का है उसके बाद दादा-दादी का। यद्यपि यह हमारी पारिवारिक सोच के विपरीत है। बच्चों के सम्पूर्ण विकास में उनके दादा-दादी की भी अहम भूमिका होती है।
उपरोक्त विचार मेरे व्यक्तिगत सोच नहीं है, वरन् समाज में पनपती हुई बुजुर्गो के द्वारा अनुभूत व अभिव्यक्त भावनाओं के सामाजिक विरोधाभास का परिणाम मात्र है। शायद जो परिवार इस त्रासदी से गुजर रहे हैं उनके लिए ये विचार कुछ राहत जरुर देंगे और जिस प्रकार वृद्धाश्रम और उनके अंदर भीड़ निरन्तर बढ़ती जा रही है, उस पर शायद कुछ अंकुश लग पाये।
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